जनता की आवाज ही, लोकतंत्र का मूल/सुरेशचन्द्र जोशी

जनता की आवाज ही, लोकतंत्र का मूल।

इसे   दबाना  रौंदना, सरकारों  की  भूल।।-1

किसने रोका है तुम्हें, करते रहो प्रयास।

जिसने किया प्रयास वे, रचते हैं इतिहास।।-2

जब तक तन में सांस है, जीवन है  श्रीमान।

श्वास  गई तो देह को, केवल  माटी जान।।-3

जीवनभर करता रहा, एक तीन का पाँच।

जो बोया सो काट ले,अटल सत्य तू जाँच।।-4

चेहरे पर चेहरे लगा, घूम रहा इंसान।

बहुत कठिन अब हो गई, मानव की पहचान।।-5

राघव की धरती यही, दिया कृष्ण ने ज्ञान।

जन्मे  थे  प्रह्लाद  भी, भारत  देश  महान।।-6

विकसित भारतवर्ष की, मूरत हैं मजदूर।

मजदूरी मिलती रहे, कभी न हों मजबूर।।-7

राजनीति  में  नीति  का, कभी न कोई काम।

क्या करना इस नीति का, जो इतनी बदनाम।।-8

भाव खूबसूरत जगें, सुन्दर अगर विचार।

दूषित  मन  में  जागते, कुंठा और विकार।।-9

मुँह की “शोभा” बोल हैं, हाथों की है दान।

कानों की शोभा श्रवण, और मनुज की ज्ञान।।-10

विकसित भारत के लिये, देता अपनी जान।

सरहद पर सैनिक खड़ा, खेतों बीच किसान।।-11

क्या बाली क्या पूतना, क्या रावण की बात।

दर्प किया जिसने यहाँ, मिली उसी को मात।।-12

सुरेशचन्द्र जोशी

जनता की आवाज ही, लोकतंत्र का मूल/सुरेशचन्द्र जोशी

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