क्रोध पर दोहे/दोहा/ नन्दिता माजी शर्मा

क्रोध में उठना
उठते हैं जो क्रोध में, बिगड़े उनके काम।
जलते हैं वे कोप वश, प्रतिदिन आठों याम।।
क्रोध में पूजन
पूजन हो जब रोष में, मिलते नहीं दयाल।
शीतल मन से जाप हो, करते ईश निहाल।।
क्रोध में खाना
भोजन हो जब क्रोध में, बिना लगाए भोग।
सेहत को लगता नहीं, बढ़ते नाना रोग।।
क्रोध में जाना
घर छोड़ें जो क्रोध में, मन में भरकर द्वेष।
मानस अंतर धीरता , तनिक न बचती शेष।।
क्रोध में आना
लौटे घर जो क्रोध में, रखकर कुंठित भाव।
खोए वैभव संपदा, बढ़ते द्वेष अलाव।।
क्रोध में सोना
सोता है जो क्रोध में, मन में रखकर द्वेष।
आयुष का भी नाश हो , क्षमता घटे अशेष।।
क्रोध पर दोहे/दोहा/ नन्दिता माजी शर्मा

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