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बाल साहित्य

बाल कथा/शुचि ‘भवि’

एक जंगल में कुत्तों ने मिलकर एक सभा बना ली और निर्णय लिया कि अब वे अपना एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव व उपसचिव चुनेंगे।सर्वसम्मति से चुनाव हो गया।सब कुत्ते आपस में मस्त-व्यस्त थे।एक दिन एक मादा भेड़िया वहाँ से गुजर रही थी।अचानक उसने देखा कि सब कुत्ते बहुत ख़ुश हैं ।उसने अपना मन बना लिया […]

नया सवेरा लाना तुम / त्रिलोक सिंह ठकुरेला

टिक टिक करती घड़ियाँ कहतीं मूल्य समय का पहचानो। पल पल का उपयोग करो तुम यह संदेश मेरा मानो ॥ जो चलते हैं सदा निरन्तर बाजी जीत वही पाते। और आलसी रहते पीछे मन मसोस कर पछताते॥ कुछ भी नहीं असम्भव जग में, यदि मन में विश्वास अटल। शीश झुकायेंगे पर्वत भी, चरण धोयेगा सागर­जल॥ […]

सात रंग के घोड़े / त्रिलोक सिंह ठकुरेला

सूरज का रथ लिए जा रहे सात रंग के घोड़े । कभी न भटके अपने पथ से कभी न खाये कोड़े ।। रोज नापते पूरब पश्चिम कोई भी ऋतु आये । पथ में आयी बाधाओं से कभी नहीं घबराये ।। कभी न रुकते, कभी न थकते, आगे बढ़ते जाते । जीवन का मतलब चलना है, […]

घर में आई गौरैया / त्रिलोक सिंह ठकुरेला

घर में आई गौरैया । झूम उठा छोटा भैया ।। गौरैया भी झूम गयी । सारे घर में घूम गयी ।। फिर मुंडेर पर जा बैठी । फिर आंगन में आ बैठी ।। कितनी प्यारी वह सचमुच । खोज रही थी शायद कुछ ।। गौरैया ने गीत सुनाया । भैया दाना लेकर आया ।। दाना […]

मेला / त्रिलोक सिंह ठकुरेला

सोनू मोनू गये शहर में , वहाँ लगा था मेला । सजी हुई थीं सभी दुकानें, लगे हुए थे ठेला ।। चाट पकौड़ी, पानी पूरी, आइस्क्रीम, मिठाई । खट्टी मीठी गोल रसभरी दोनों ने मिल खाई ।। रंग बिरंगे गुब्बारों ने उनको खूब लुभाया । जादूगर का खेल देखकर मन में अचरज आया ।। वहाँ […]

नई सदी के बच्चे / त्रिलोक सिंह ठकुरेला

नई सदी के बच्चे हैं हम मिलकर साथ चलेंगे । प्रगति के रथ को हम मिलकर नई दिशाएं देंगे । जल, थल, नभ में काम करेंगे जो चाहें पायेंगे । सदा राष्ट्र की विजय पताका मिलकर फहरायेंगे ।। हर कुरीति, हर आडम्बर को मिलकर नष्ट करेंगे । सबके मन में नई उमंगें, सपने नये भरेंगे […]

जीवन सुगम बनायें / त्रिलोक सिंह ठकुरेला

हिलमिल हिलमिल चाँद सितारे रहते साथ गगन में । गाते और फुदकते पंछी मिलकर रहते वन में ।। रंग रंग के, ढंग ढंग के सुमन साथ में खिलते । उपवन और मनोहर लगता जब तितली दल मिलते ।। घूम घूमकर , झूम झूम जब सागर में मिल जातीं । और तरंगित होती नदियां सागर ही […]

रोबोट / त्रिलोक सिंह ठकुरेला

मम्मी, तुम रोबोट मंगा लो, वही करेगा घर के काम । जो चाहोगी वही करेगा तुम करना केवल आराम ।। घर की साफ सफाई, मम्मी, उससे ही करवाना । वही बनाकर देगा सबको तरह तरह का खाना ।। मुझको पढ़ने में होगी जब कोई भी कठिनाई । उससे ही सब विषय पढ़ूगा, होगी सरल पढ़ाई […]

चिड़िया / त्रिलोक सिंह ठकुरेला

घर में आती जाती चिड़िया । सबके मन को भाती चिड़िया ।। तिनके लेकर नीड़ बनाती , अपना घर परिवार सजाती , दाने चुन चुन लाती चिड़िया । सबके मन को भाती चिड़िया ।। सुबह सुबह जल्दी जग जाती , मीठे स्वर में गाना गाती , हर दिन सुख बरसाती चिड़िया । सबके मन को […]

वर्षा आई / त्रिलोक सिंह ठकुरेला

रिमझिम रिमझिम वर्षा आई। ठण्डी हवा बही सुखदाई ।। बाहर निकला मेंढक गाता, उसके पास नहीं था छाता, सर पर बूँदें पड़ी दनादन तब घर में लौटा शर्माता, उसकी माँ ने डाँट लगाई। रिमझिम रिमझिम वर्षा आई ।। पंचम स्वर में कोयल बोली, नाच उठी मोरों की टोली, गधा रंभाया ढेंचू ढेंचू सबको सूझी हँसी […]

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