हो ‘गणेश’ उत्तीर्ण/भाऊराव महंत
लम्बी-लम्बी सूंड तुम्हारी, सूपे जैसे कान। और सामने लेकर बैठे, मोदक की दूकान। मुँह में एक दाँत है केवल, मटके जैसा पेट। जिसमें भर सकते हैं हम तो, लड्डू सौ-सौ प्लेट। इतना भोग लगाने से भी, होता नहीं अजीर्ण। भोजन खूब पचाने में तुम, हो ‘गणेश’ उत्तीर्ण।।