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सजल

घुमड़ रहे हैं घन विकराले/सजल/नन्दिता माजी शर्मा

घुमड़ रहे हैं घन विकराले। दबे जा रहे विमल उजाले।। साधु-संत-मुनि ध्यानमग्न सब। काम,लोभ, मद मन में पाले।। कम कृतित्व है अधिक दिखावा। अधजल-गगरी नीर उछाले।। लाल महावर सजा पगों में। झाँक रहे हैं तलवे काले।। ढोल पीटते पर-दोषों का। निज पर लोगों के मुख ताले।। विवश क्षुधा से भिक्षु विकल है। नालों में नित […]

जिंदगी/सजल/नन्दिता माजी शर्मा

जिंदगी यह जीत भी है हार भी। फूल भी है और यह अंगार भी।। हर तरफ आघात ही आघात है। अब नहीं दिखता कहीं उपकार भी।। कर्म से ही हो सफल संकल्प शुभ। गूँज जाती जीत की गुंजार भी।। हो समर्पित मन-वचन-कर्म से मनुज। मोड़ देता है समय की धार भी।। एक छोटी चूक कर […]

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