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संस्मरण

सेवाग्राम के दर्शन/यशपाल

सन 1939 में दूसरा महायुद्ध आरंभ हुआ तो ब्रिटिश साम्राज्‍यशाही सरकार ने भारत की इच्‍छा के विरुद्ध भी देश को उस युद्ध में लपेट लिया। उस समय देश के सभी राजनैतिक दल युद्ध में भाग लेने के विरुद्ध थे। ब्रिटिश सरकार के इस अन्‍याय के विरोध में कांग्रेस मंत्रिमंडलों ने शासन से असहयोग कर त्‍यागपत्र […]

मुक्तिबोधःएक संस्मरण/हरिशंकर परसाई

भोपाल के हमीदिया अस्पताल में मुक्तिबोध जब मौत से जूझ रहे थे, तब उस छटपटाहट को देखकर मोहम्मद अली ताज ने कहा था – उम्र भर जी के भी न जीने का अन्दाज आया जिन्दगी छोड़ दे पीछा मेरा मैं बाज आया जो मुक्तिबोध को निकट से देखते रहे हैं, जानते हैं कि दुनियावी अर्थों […]

मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय/धर्मवीर भारती

अगस्त १९८९, बचने की उम्मीद नहीं थी। तीन-तीन ज़बर्दस्त हार्ट अटैक, एक के बाद एक। एक तो ऐसा कि नब्ज़ बन्द, सांस बन्द, धड़कन बंद। डाक्टरों ने घोषित कर दिया कि अब प्राण नहीं रहे। पर डॉ. बोर्जेस ने फिर भी हिम्मत नहीं हारी थीं। उन्होंने १०० वाल्ट्स के शाक्स दिए, भयानक प्रयोग। लेकिन वे बोले […]

काले मेघा पानी दे/धर्मवीर भारती

उन लोगों के दो नाम थे – इंदर सेना या मेढक-मंडली | बिल्कुल एक दूसरे के विपरीत | जो लोग उनके नग्नस्वरूप शरीर, उनकी उछलकूद, उनके शोर-शराबे और उनके कारण गली में होने वाले कीचड़ काँदो से चिढ़ते थे, वे उन्हें कहते थे मेंढक-मंडली | उनकी अगवानी गलियों से होती थी | वे होते थे […]

मेरी पहली कविता/सुमित्रानंदन पंत

अल्मोड़े में पादरियों तथा ईसाई धर्म प्रचारकों के भाषण प्रायः ही सुनने को मिलते थे, जिनसे मैं छुटपन में बहुत प्रभावित रहा हूँ। वे पवित्र जीवन व्यतीत करने की बातें करते थे और प्रभु की शरण आने का उपदेश देते थे जो मुझे बहुत अच्छा लगता था। गिरजे के घंटे की ध्वनि से प्रेरणा पाकर […]

निक्की, रोजी और रानी/महादेवी वर्मा

बाल्यकाल की स्मृतियों में अनुभूति की वैसी ही स्थिति रहती है, जैसी भीगे वस्त्र में जल की । वह प्रत्यक्ष नहीं दिखाई देता, किन्तु वस्त्र के शीतल स्पर्श में उसकी उपस्थिति व्यक्त होती रहती है । इन स्मृतियों में और भी विचित्रता है। समय के माप से वे जितनी दूर होती जाती हैं, अत्मीयता के […]

गौरा गाय/महादेवी वर्मा

(गाय के नेत्रों में हिरन के नेत्रों-जैसा विस्मय न होकर आत्मीय विश्वास रहता है। उस पशु को मनुष्य से यातना ही नहीं, निर्मम मृत्यु तक प्राप्त होती है, परंतु उसकी आंखों के विश्वास का स्थान न विस्मय ले पाता है, न आतंक।) गौरा मेरी बहिन के घर पली हुई गाय की व:यसंधि तक पहुंची हुई […]

दुर्मुख-खरगोश/महादेवी वर्मा

किसी को विश्वास न होगा कि बोल-चाल के लड़ाकू विशेषण से लेकर शुद्ध संस्कृत की ‘दुर्मुख’, ‘दुर्वासा’ जैसी संज्ञाओं तक का भार संभालने वाला एक कोमल प्राण खरगोश था। परन्तु यथार्थ कभी-कभी कल्पना की सीमा नाप लेता है। किसी सजातीय-विजातीय जीव से मेल न रखने के कारण माली ने उस खरगोश का लड़ाकू नाम रख […]

सोना हिरणी/महादेवी वर्मा

सोना की आज अचानक स्मृति हो आने का कारण है। मेरे परिचित स्वर्गीय डाक्टर धीरेन्द्र नाथ वसु की पौत्री सस्मिता ने लिखा है : ‘गत वर्ष अपने पड़ोसी से मुझे एक हिरन मिला था। बीते कुछ महीनों में हम उससे बहुत स्नेह करने लगे हैं। परन्तु अब मैं अनुभव करती हूँ कि सघन जंगल से […]

गिल्लू/महादेवी वर्मा

सोनजुही में आज एक पीली कली लगी है। इसे देखकर अनायास ही उस छोटे जीव का स्मरण हो आया, जो इस लता की सघन हरीतिमा में छिपकर बैठता था और फिर मेरे निकट पहुँचते ही कंधे पर कूदकर मुझे चौंका देता था। तब मुझे कली की खोज रहती थी, पर आज उस लघुप्राण की खोज […]

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