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मुक्तक

मुक्तकी/गोपालदास नीरज

शब्द तो शोर है, तमाशा है शब्द तो शोर है, तमाशा है, भाव के सिन्धु में बताशा है, मर्म की बात होंठ से न कहो मौन ही भावना की भाषा है । देह तो सिर्फ साँस का घर है देह तो सिर्फ साँस का घर है, साँस क्या? बोलती हवा भर है, तुम मुझे अच्छा-बुरा […]

मुक्तक/वसंत जमशेदपुरी

तुम धरती हो मैं अंबर हूँ,तुम सरिता मैं सागर हूँ | तुम वृषभानु लली कुसुमांगी,मैं नटखट नट नागर हूँ | तुम मरीचिका हो मरुधर की,मैं हूँ मदमाता सावन- तप्त देह को सिंचित करने,आया ले जल-गागर हूँ |     जिस सावन में मेघ न बरसे,वह सावन क्या सावन है | परिरंभन की चाह न हो […]

मुक्तक/आशीष कुमार पाण्डेय

अपनी सोच को ही  कलम से कागज़ पर उतार देता  हूं, महफिल में मिले वाह वाहियां हमें इसलिए हंसा देता हूं, दिन  रात  जो करता हूं मैं हद से ज्यादा  उद्यम सफर में, खुश रहे परिवार इस लिए बेहिसाब पसीना बहा देता हूं, तुम  साथ दो  यदि  मेरा, मैं  राह   समुंदर  में  बना  दूं, तुम […]