नये जमाने की मुकरी/भारतेन्दु हरिश्चंद्र
सब गुरुजन को बुरो बतावै । अपनी खिचड़ी अलग पकावै । भीतर तत्व न झूठी तेजी । क्यों सखि साजन ? नहिं अँगरेजी । तीन बुलाए तेरह आवैं । निज निज बिपता रोइ सुनावैं । आँखौ फूटे भरा न पेट । क्यों सखि साजन ? नहिं ग्रैजुएट । सुंदर बानी कहि समुझावै । बिधवागन सों […]