+91-9997111311,    support@sahityaratan.com

मुकरियाँ

नये जमाने की मुकरी/भारतेन्दु हरिश्चंद्र

सब गुरुजन को बुरो बतावै । अपनी खिचड़ी अलग पकावै । भीतर तत्व न झूठी तेजी । क्यों सखि साजन ? नहिं अँगरेजी । तीन बुलाए तेरह आवैं । निज निज बिपता रोइ सुनावैं । आँखौ फूटे भरा न पेट । क्यों सखि साजन ? नहिं ग्रैजुएट । सुंदर बानी कहि समुझावै । बिधवागन सों […]

मुकरियाँ/तारकेश्वरी ‘सुधि’

जब भी बैठा थाम कलाई। मैं मन ही मन में इतराई । नहीं कर पाती मैं प्रतिकार । क्या सखि, साजन? नहीं, मनिहार । धरता रूप सदा बहुतेरे। जगती आशा जब ले फेरे। कभी निर्दयी कर देता छल। क्या सखि, साजन? ना सखि, बादल। राज छुपाकर रखता गहरे। तरह-तरह के उन पर पहरे। करता कभी […]

×