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नवगीत

पीते-पीते आज करीना/अवनीश सिंह चौहान

  पीते-पीते आज करीना बात पते की बोल गयी   यह तो सच है शब्द हमारे होते हैं घर-अवदानी घर जैसे कलरव बगिया में मीठा नदिया का पानी   मृदु भाषा में एक अजनबी का वह जिगर टटोल गयी   प्यार-व्यार तो एक दिखावा होटल के इस कमरे में नज़र बचाकर मिलने में भी मिलना […]

पगडंडी/अवनीश सिंह चौहान

सब चलते चौड़े रस्ते पर पगडंडी पर कौन चलेगा?   पगडंडी जो मिल न सकी है राजपथों से, शहरों से जिसका भारत केवल-केवल खेतों से औ’ गाँवों से   इस अतुल्य भारत पर बोलो सबसे पहले कौन मरेगा?   जहाँ केन्द्र से चलकर पैसा लुट जाता है रस्ते में और परिधि भगवान भरोसे रहती ठण्डे […]

बदरा आए/अवनीश सिंह चौहान

  धरती पर है धुंध, गगन में घिर-घिर बदरा आए   लगे इन्द्र की पूजा करने नम्बर दो के जल से पाप-बोध से भरी धरा पर बदरा क्योंकर बरसे कृपा-वृष्टि हो बेकसूर पर हाँफ रहे चैपाए   हुए दिगम्बर पेड़, परिन्दे- हैं कोटर में दुबके नंगे पाँव फँसा भुलभुल में छोटा बच्चा सुबके धुन कजरी […]

देवी धरती की/अवनीश सिंह चौहान

दूब देख लगता यह सच्ची कामगार धरती की   मेड़ों को साध रही है खेतों को बाँध रही है कटी-फटी भू को अपनी- ही जड़ से नाथ रही है कोख हरी करती है सूनी पड़ी हुई परती की   दबकर खुद तलवों से यह तलवों को गुदगुदा रही ग्रास दुधरू गैया का परस रहा है […]