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नवगीत

बरसात के बादल/नवगीत/रवीन्द्र उपाध्याय

छा गये आकाश में बरसात के बादल ! गरजते , नभ घेरते ये जलद कजरारे झूमते ज्यों मत्त कुंजर क्षितिज के द्वारे बजा देंगे हर दिशा की आज ये साँकल ! ग्रीष्मदग्धा धरा का अब तप फलित होगा हर्ष से मन खिल उठेगा तन हरित होगा थिरकते पग में सजेगी बूँद की पायल ! लगेंगे […]

धूप लिखेंगे-छाँह लिखेंगे/नवगीत/रवीन्द्र उपाध्याय

धूप लिखेंगे-छाँह लिखेंगे मंजिल वाली राह लिखेंगे खुशियों के कोलाहल में जो दबी-दबी है आह, लिखेंगे। बादल काले – उजला पानी निशा-गर्भ में उषा सुहानी रंग-गन्ध की कथा चल रही श्रोता विवश शूल अभिमानी सतत् सत्य-सन्धानी हैं हम कैसे हम अफ़वाह लिखेंगे! जलता एक दीप काफ़ी है चाहे जितना तम हो गहरा कब रुकते हैं […]

विश्वास का सम्बल/नवगीत/रवीन्द्र उपाध्याय

शब्द को जब आचरण का बल मिलेगा अर्थ को विश्वास का सम्बल मिलेगा। तपिश हो अनुभूतियों में आपकी जब आग बोलें रंग में डूबे हुए अहसास हों तब फाग बोलें दर्द बोलेंगे अगर-दिल भी छिलेगा। बैठकर तट तरंगों पर तराने गढ़ना सु-कर है पार जाना धार का प्रतिकार कर बिल्कुल इतर है सामना सच का […]

मजा कुछ और है/नवगीत/रवीन्द्र उपाध्याय

फूंक कर चलने में खतरे का नहीं है डर, मगर तेज चलने का मज़ा कुछ और है। ज़िन्दगी प्रतियोगिता है साहसी ही जीतता है पवन-गति से बढ़ चला जो पुतलियों में लक्ष्य ले उसको ही होना यहाँ सिरमौर है। हरी लकड़ी-सा धुआँना जल न सकना-बुझ न पाना कहीं बेहतर चार पल ही धधक कर जो […]

सच में शक्ति अकूत/डॉ. बिपिन पाण्डेय

कैसे दें दुनिया को बोलो, पक्के ठोस सबूत, सच में शक्ति अकूत! चौखट पर जाने वाले को, धमकाता कानून? होकर बरी घूमते दोषी, होता सच का खून। लथपथ बेबस बना हुआ है जग में सत्य अछूत। अनुल्लंघ्य लगते हैं सच को, सुन्दर से मेहराब। गली-गली में भटक देखता, निज प्रसार के ख्वाब। नहीं टूटते कभी […]

समय ने करवट/डॉ. बिपिन पाण्डेय

जिसके हिस्से में रहती थी हर पग पर दुश्वारी, स्वप्नों के बटुवे में उसके आई दुनिया सारी। शिक्षा के झोंके ने उलटा परंपरा का घूँघट। रही दिखाती आदिकाल से जो अपनी मुस्तैदी, चूल्हे-चौके तक हो सीमित बनी घरों में कैदी। साथ सड़क के दौड़ लगाती, रोजाना अब सरपट। अबला समझ दिखाया सबने अपना रूप घिनौना, […]

बदल गए है सब प्रतिमान/डॉ. बिपिन पाण्डेय

बदल गए है सब प्रतिमान अस्ताचल में सच का सूरज हुआ झूठ का नवल विहान, त्याज्य हुआ पंचामृत पोषक मैला लगता गंगा नीर, तीर्थाटन है सैर-सपाटा घूम-घूम खींचें तस्वीर। नागफनी की पूजा होती तुलसी झेल रही अपमान। हाय-बाय पर हम आ पहुँचे बंद नमस्ते और प्रणाम, सिसक रहा है दौर दुखी हो फैशन के कारण […]

द्रुपद सुता की साड़ी खींचें/डॉ. बिपिन पाण्डेय

सज्जनता के जेवर रास नहीं आते दुनिया को सज्जनता के जेवर। फिकरा कसती रहती राहें अपने कहते बुजदिल, खून जोंक-सा चूसा करती रोज अनोखी मुश्किल। धूर्त भेड़िए दिखलाते हैं अपने तीखे तेवर। पूज्य तिरस्कृत जब होता है निंदित जाता पूजा, बाज बना वह भरे उड़ाने सच में होता चूजा। सुरसा जैसा दुर्जनता का बदला दिखे […]

बँधी हुई खूँटे से नावें/डॉ. बिपिन पाण्डेय

बहरे हैं चलने वाले साथ सभी जब अंधे, गूँगे, बहरे हैं, कैसे पूरे होंगे जो भी देखे स्वप्न सुनहरे हैं। बँधी हुई खूँटे से नावें खाती हैं तट पर हिचकोले, उत्ताल तरंगें ले जाएँगी उस पार नहीं ऐसे भोले। कैसे साथ चले परछाईं जब हम बैठे ठहरे हैं। दुर्दमनीय हुई है पीड़ा दम साधे बैठी […]

मक्कारी की रोटी खाता/डॉ. बिपिन पाण्डेय

समय बड़ा अलबेला है ता – ता थैया खूब नचाए, समय बड़ा अलबेला है। कहीं जेब में बोझिल बटुआ, कहीं न कौड़ी – धेला है। कहीं दौड़ता चीते – सा वह कहीं हाथ पर बंद घड़ी। धमा-चौकड़ी कहीं हो रही, और कहीं है हाथ छड़ी। इस दुनिया में अरमानों का, कैसा अजब झमेला है। भागम-भाग […]

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