गीत

रामपाल अब नहीं लगाता है कुर्ते में नील/गीत/धीरज श्रीवास्तव

रामपाल अब नहीं लगाता है कुर्ते में नील। उसकी खुशियाँ उसके सपने वक्त गया सब लील। बिन पानी के मछली जैसे तड़प रहा वह आज! बिटिया अपनी ब्याहे कैसे और बचाये लाज! संघर्षों में सूख चली है आँखों की भी झील। रामपाल अब नहीं लगाता है कुर्ते में नील। शहर दिखाये ले जाकर जब दो […]

जाने कितनी बार ठगा/गीत/धीरज श्रीवास्तव

मन के भोलेपन को तुमने जाने कितनी बार ठगा। जो कुछ भी था मेरा अपना कर डाला सब तुमको अर्पण ! देख तुम्हारे छल प्रपंच को, जी भर रोया व्यथित समर्पण ! स्वप्न दिखाकर केवल झूठे सच्चा पावन प्यार ठगा। मन के भोलेपन को तुमने जाने कितनी बार ठगा। छाती से चिपकाकर सुधियाँ पीड़ाओं ने […]

हम कितना रोये होंगे/गीत/धीरज श्रीवास्तव

तुम क्या जानो तुम्हे सोचकर हम कितना रोये होंगे। आओ बैठो पास हमारे तनिक पूछ लो हम कैसे हैं ? चलते रहे सफर में मीलों दिशाहीन बादल जैसे हैं ! नयनों में भर-भरकर पानी कैसे हम ढोये होंगे। तुम क्या जानों तुम्हें सोचकर हम कितना रोये होंगे। ढाल वेदना को गीतों में भटक भटक बस […]

घर का कोना कोना अम्मा/गीत/धीरज श्रीवास्तव

अपने घर का हाल देखकर,चुप रहना मत रोना अम्मा। सन्नाटे में बिखर गया है,घर का कोना कोना अम्मा। खेत और खलिहान बिक गये इज्जत चाट रही माटी ! अलग अलग चूल्हों में मिलकर भून रहे सब परिपाटी ! नज़र लगी जैसे इस घर को,या कुछ जादू टोना अम्मा। सन्नाटे में बिखर गया है,घर का कोना […]

अम्मा तुम तो चली गई/गीत/धीरज श्रीवास्तव

अम्मा तुम तो चली गई पर लाल तुम्हारा झेल रहा। जैसे तैसे घर की गाड़ी अपने दम पर ठेल रहा. बैठ करे पंचायत दिन भर सजती और सँवरती है! जस की तस है बहू तुम्हारी अपने मन का करती है! कभी नहीं ये राधा नाची कभी न नौ मन तेल रहा। अम्मा तुम तो चली […]

आँसू/गीत/धीरज श्रीवास्तव

जानते सब धर्म आँसू। वेदना के मर्म आँसू। चाँद पर हैं ख्वाब सारे हम खड़े फुटपाथ पर! खींचते हैं बस लकीरें रोज अपने हाथ पर! क्या करे ये ज़िन्दगी भी आँख के हैं कर्म आँसू। जानते सब धर्म आँसू। वेदना के मर्म आँसू। आज वर्षों बाद उनकी याद है आई हमें! फिर वही मंजर दिखाने […]

क्या रक्खा अब यार गाँव में/गीत/धीरज श्रीवास्तव

क्या रक्खा अब यार गाँव में। नहीं रहा जब प्यार गाँव में। बड़कन के दरवाजे पर है खूँटा गड़ा बुझावन का! फोड़ दिया सर कल्लू ने कल अब्दुल और खिलावन का! गली-गली में बैर भाव बस मतलब का व्यवहार गाँव में! क्या रक्खा अब यार गाँव में। नहीं रहा जब प्यार गाँव में। बेटी की […]

तुम पर कोई गीत लिखूँ/गीत/धीरज श्रीवास्तव

बहुत दिनोँ से सोच रहा हूँ तुम पर कोई गीत लिखूँ। अन्तर्मन के कोरे कागज पर तुमको मनमीत लिखूँ। लिख दूँ कैसे नजर तुम्हारी दिल के पार उतरती है ! और कामना कैसे मेरी तुमको देख सँवरती है ! पंछी जैसे चहक रहे इस मन की सच्ची प्रीत लिखूँ। बहुत दिनोँ से सोच रहा हूँ […]

रक्षा करना राम/गीत/धीरज श्रीवास्तव

मन मैंना का इमली जैसा तन ज्यों कच्चा आम। घूर रही हैं कामुक नजरें रक्षा करना राम।। गली गली टर्राकर मेंढक खूब जताते प्यार  ! मारें बाज झपट्टे निश दिन टपकाते हैं लार ! उल्लू अक्सर आँख मारते गिद्ध करे बदनाम । दारू पीकर  कछुए ताड़ें सर्प रहे फुफकार ! गिरगिट करें इशारे फूहड़ घोंघों […]

ये उदासी प्राण लेकर जा रही/गीत/धीरज श्रीवास्तव

ये उदासी प्राण लेकर जा रही हो सके तो तुम चली आओ प्रिये। भावनाएँ राधिका सी, हो गयीं हैं बावरी! कृष्ण गोरे हो गये हैं, गोपियाँ सब साँवरी! घोलती थी मधु कभी जो कान में बाँसुरी वह तान लेकर जा रही हो सके तो तुम चली आओ प्रिये। सोच के हर दायरे में उलझनों के […]