रामपाल अब नहीं लगाता है कुर्ते में नील/गीत/धीरज श्रीवास्तव
रामपाल अब नहीं लगाता है कुर्ते में नील। उसकी खुशियाँ उसके सपने वक्त गया सब लील। बिन पानी के मछली जैसे तड़प रहा वह आज! बिटिया अपनी ब्याहे कैसे और बचाये लाज! संघर्षों में सूख चली है आँखों की भी झील। रामपाल अब नहीं लगाता है कुर्ते में नील। शहर दिखाये ले जाकर जब दो […]
