गीत

मेरे गाँव की चिनमुनकी/गीत/धीरज श्रीवास्तव

मीठे गीत प्रणय के गाकर और रात सपनों में आकर मुझको रोज छला करती है मेरे गाँव की चिनमुनकी । अक्सर कहकर मर जाऊँगी मुझको बहुत डराती है ! और ठान ले जो जिद अपनी मुझसे पाँव धराती है ! कभी – कभी रस खूब घोलकर और कभी वो झूठ बोलकर अक्सर बहुत कला करती […]

सँवरकी/गीत/धीरज श्रीवास्तव

आज अचानक हमें अचम्भित, सुबह-सुबह कर गयी सँवरकी। कफ़ ने जकड़ी ऐसे छाती, खाँस-खाँस मर गयी सँवरकी। जूठन धो-धोकर,खुद्दारी, बच्चे दो-दो पाल रही थी। विवश जरूरत जान बूझकर, बीमारी को टाल रही थी। कल ही की तो बात शाम को ठीक-ठाक घर गयी सँवरकी। लाचारी पी-पीकर काढ़ा ढाँढस रही बँधाती मन को। आशंकित थी, दीमक […]

कल्लू काका/गीत/धीरज श्रीवास्तव

चौराहे पर कल्लू काका। दिन भर मारें गप्प सड़ाका। घर में भूजी भाँग न बाकी भूखा पेट बहुत हठधर्मी। आलस पड़ा भरे खर्राटे गर्दन तक ओढ़े बेशर्मी। सैर स्वप्न में करें इरादे लन्दन पेरिस दुबई ढाका। चौराहे पर कल्लू काका। दिन भर मारें गप्प सड़ाका। उछल उछल लँगड़ी आशाएं दिखा रहीं फोकट में सर्कस। बीड़ी,जर्दा,चिलम,चुनौटी […]

फूट फूटकर अम्मा रोयीं/गीत/धीरज श्रीवास्तव

आँगन में दीवार पड़ गयी सन्नाटा है द्वारे पर। फूट फूटकर अम्मा रोयीं चाचा से बँटवारे पर। साँझ लगाती मरहम कैसे भला भूख के कूल्हे पर ! दुख की चढ़ी पतीली हो जब आशाओं के चूल्हे पर ! हमने ढलते आँसू देखे तुलसी के चौबारे पर। फूट फूटकर अम्मा रोयीं चाचा से बँटवारे पर। तनिक […]

रिक्शे वाले/गीत/धीरज श्रीवास्तव

फटे पाँव हाथों में छाले। मगर मस्त हैं रिक्शे वाले। रोज थिरकतीं मदहोशी में, सांझ ढले आशाएं भोली। स्वप्न अधूरे ठर्रा पीकर, नमक चाट कर करें ठिठोली। फुटपाथों पर नग्न गरीबी पड़ी अगौंछा मुँह पर डाले। सेंक रही है बैठ विवशता ईंटों के चूल्हे पर रोटी। प्यासा गला ढूंढता फिरता सड़क किनारे नल की टोटी। […]

चूमे प्रेम निशानी मन/गीत/धीरज श्रीवास्तव

तड़पे,सिसके,छुए निहारे चूमे प्रेम निशानी मन। लौट न पाता पास तुम्हारे किन्तु हठी,अभिमानी मन। किया हवा ने छल बादल से, चली छुड़ाकर हाथ अचानक। ठहर गया बढ़ सका न आगे, रहा अधूरा प्रेम कथानक। बुने उसी को साँझ सकारे, पल पल गढ़े कहानी मन। लौट न पाता पास तुम्हारे किन्तु हठी, अभिमानी मन। पलकों की […]

लिखकर गीत रात भर/गीत/धीरज श्रीवास्तव

अक्षर -अक्षर प्राण सँजोये लिखकर गीत रात भर रोये मतलब के सब रिश्ते नाते देख देखकर बस मुस्काते जकड़े बैठी हमें विवशता हम मुस्कान कहाँ से लाते कब बुनते नयनों में सपने? गुजरी उम्र न पल भर सोये लिखकर गीत रात भर– निठुर नियति के राग पुराने दुख बैठे हैं लिए बहाने किस किससे हम […]

कमली चली गई/गीत/धीरज श्रीवास्तव

देख गाँव का भ्रष्ट आचरण कमली चली गई। हँसती गाती रही हमेशा अक्सर ही इतराती थी! संग सुमन के रही खेलती मन ही मन हर्षाती थी! उस उपवन के माली से ही मसली कली गई। देख गाँव का भ्रष्ट आचरण कमली चली गई। माथ पकड़कर झिनकन रोता रोती बहुत कटोरी है! हाय विधाता क्या कर […]

रामधनी/गीत/धीरज श्रीवास्तव

जैसे तैसे कटी अभी तक मगर भूख से रही ठनी। शेष बचे दिन कैसे काटे सोच रहा है रामधनी। कोरे स्वप्न बिछाये कब तक , सोये वह उम्मीदें ओढ़। कैसे भला छिपाए आखिर, लिए गरीबी का जो कोढ़। पक्का याद नहीं इस घर में कब अरहर की दाल बनी शेष बचे दिन कैसे काटे सोच […]

एक अचम्भा/गीत/धीरज श्रीवास्तव

एक अचम्भा देखा हमने आज गाँव के पास। आसमान से परी उतरकर छील रही थी घास। सुंदरता को देख देवियाँ रहीं स्वयं को कोस ! श्रम की बूँदें यों माथे पर ज्यों फूलों पर ओस ! चूड़ी की खन खन सँग उसके नृत्य करे मधुमास। आसमान से परी उतर कर छील रही थी घास। चटक […]