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गद्य

ग्राम/कहानी/जयशंकर प्रसाद

1 टन! टन! टन! स्टेशन पर घण्टी बोली। श्रावण-मास की सन्ध्या भी कैसी मनोहारिणी होती है! मेघ-माला-विभूषित गगन की छाया सघन रसाल-कानन में पड़ रही है! अँधियारी धीरे-धीरे अपना अधिकार पूर्व-गगन में जमाती हुई, सुशासनकारिणी महाराणी के समान, विहंग प्रजागण को सुख-निकेतन में शयन करने की आज्ञा दे रही है। आकाशरूपी शासन-पत्र पर प्रकृति के […]

चंदा/कहानी/जयशंकर प्रसाद

1 चैत्र-कृष्णाष्टमी का चन्द्रमा अपना उज्ज्वल प्रकाश ‘चन्द्रप्रभा’ के निर्मल जल पर डाल रहा है। गिरि-श्रेणी के तरुवर अपने रंग को छोड़कर धवलित हो रहे हैं; कल-नादिनी समीर के संग धीरे-धीरे बह रही है। एक शिला-तल पर बैठी हुई कोलकुमारी सुरीले स्वर से-‘दरद दिल काहि सुनाऊँ प्यारे! दरद’ …गा रही है। गीत अधूरा ही है […]

तानसेन/कहानी/जयशंकर प्रसाद

1 यह छोटा सा परिवार भी क्या ही सुन्दर है, सुहावने आम और जामुन के वृक्ष चारों ओर से इसे घेरे हुए हैं। दूर से देखने में यहॉँ केवल एक बड़ा-सा वृक्षों का झुरमुट दिखाई देता है, पर इसका स्वच्छ जल अपने सौन्दर्य को ऊँचे ढूहों में छिपाये हुए है। कठोर-हृदया धरणी के वक्षस्थल में […]

मुकरियाँ/अमीर खुसरो

अति सुंदर जग चाहे जाको, मैं भी देख भुलानी वाको, देख रूप माया जो टोना । ऐ सखि साजन, ना सखि सोना ।। अति सुरंग है रंग रंगीलो है गुणवंत बहुत चटकीलो राम भजन बिन कभी न सोता ऐ सखि साजन ? ना सखि तोता ।। अर्ध निशा वह आया भौन सुंदरता बरने कवि कौन […]

आगरा बाजार/हबीब तनवीर

(नज़ीर अकबराबादी 18 वीं सदी के भारतीय शायर थे, जिन्हें नज्म का पिता कहा जाता है। उनकी सबसे प्रसिद्ध व्यंग्यात्मक गजल ‘बंजारानामा’ है। वे धर्म-निरपेक्ष व्यक्ति थे। हबीब तनवीर ने ‘नज़ीर अकबराबादी’ को प्रतिष्ठित करने के लिए ही आगरा बाजार नाटक लिखा था। आगरा बाजार’ नाटक का रचना काल 1954 है। स्थान आगरा के ‘किनारी […]

कारतूस/हबीब तनवीर

(बच्चों का नाटक, वज़ीर अली माज़ूल शाहे अवध पर) पात्र 1. कर्नल 2. लेफ्टिनेंट 3. सिपाही (गोरा) 4. सवार समय : 1799 रात दृश्य : लड़ाई का खेमा (गोरखपुर के जंगल में कर्नल कॉलिंस के खेमे का अंदरूनी हिस्सा, कर्नल एक अंग्रेज़ लेफ्टिनेंट के साथ बैठे बातें कर रहा है । खेमे के बाहर चाँदनी […]

चाँदी का चमचा/हबीब तनवीर

पात्र 1. दुकानदार 2. पड़ोसिन 3. मित्र 4. कुछ पड़ोसी 5. टोनी समय : प्रातः काल खेल की अवधि : दस मिनट स्थान : सड़क के किनारे बंबई शहर का एक तिमंजिला मकान काल : वर्तमान (मंच ऐसा हो मानो एक सड़क है जो दाएँ से बाएँ जाती है। इस सड़क पर चलने वालों के […]

उसने कहा था/चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’

बड़े-बडे़ शहरों के इक्के-गाड़ी वालों की जबान के कोड़ों से जिनकी पीठ छिल गई है और कान पक गए हैं, उनसे हमारी प्रार्थना है कि अमृतसर के बम्बू कार्ट वालों की बोली का मरहम लगावे। जबकि बड़े शहरों की चौड़ी सड़को पर घोड़े की पीठ को चाबुक से धुनते हुए इक्के वाले कभी घोड़े की […]

बुद्धु का काँटा/चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’

1 रघुनाथ प् प् प्रसाद त् त् त्रिवेदी – या रुग्‍नात् पर्शाद तिर्वेदी – यह क्‍या? क्‍या करें, दुविधा में जान हैं। एक ओर तो हिंदी का यह गौरवपूर्ण दावा है कि इसमें जैसा बोला जाता है वैसा लिखा जाता है और जैसा लिखा जाता है वैसा ही बोला जाता है। दूसरी ओर हिंदी के […]

घंटाघर/चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’

एक मनुष्य को कहीं जाना था। उसने अपने पैरों से उपजाऊ भूमि को बंध्या करके पगडंडी काटी और वह वहाँ पर पहला पहुँचने वाला हुआ। दूसरे, तीसरे और चौथे ने वास्तव में उस पगडंडी को चौड़ी किया और कुछ वर्षों तक यों ही लगातार जाते रहने से वह पगडंडी चौड़ा राजमार्ग बन गई, उस पर […]