समय चक्र/छाया त्रिपाठी ओझा
धीरे धीरे आँख मूँदकर समय चक्र चलता रहता है। नित्य कहानी कहते कहते सुख दुख सारे सहते सहते सदियों से मुस्काती सरिता चलती जाती बहते बहते बंद सीपियों तक में देखो मोती भी पलता रहता है। समय—– टूट कभी जाती है डाली फूल तोड़कर हँसता माली गिर जाते पतझड़ में पत्ते अंतस […]