+91-9997111311,    support@sahityaratan.com

काव्य-गीत-पद्य

समय चक्र/छाया त्रिपाठी ओझा

धीरे धीरे आँख मूँदकर समय चक्र चलता रहता है।   नित्य कहानी कहते कहते सुख दुख सारे सहते सहते सदियों से मुस्काती सरिता चलती जाती बहते बहते   बंद सीपियों तक में देखो मोती  भी पलता रहता है। समय—–   टूट कभी जाती है डाली फूल तोड़कर हँसता माली गिर जाते पतझड़ में पत्ते अंतस […]

प्रश्न करने दिन खड़ा थाःसुरजीत मान जलईया सिंह

प्रश्न करने दिन खड़ा थाःसुरजीत मान जलईया सिंह डाउनलोड ई-पत्रिका (पीडीऍफ़) प्रश्न करने दिन खड़ा था नींद सन्नाटों ने तोड़ी। फूटकर रोने लगा मैं गाँव के व्यवहार पर। पेड़ से पत्ते गिरे हैं टहनियों पर फिर हंसे हैं। हर तरफ जाले घिरे हैं जुगनू उनमें जा फंसे हैं। सरसराया काल देखो जोर करती हैं हवाएं। […]

सहारा गीत काःमयंक श्रीवास्तव

सहारा गीत काःमयंक श्रीवास्तव डाउनलोड ई-पत्रिका (पीडीऍफ़) याद की परछाइयों का साथ देने ले लिए राह में मिल ही गया हमको सहारा गीत का।   मूक अन्तदृष्टि की संवेदना का स्वर मिला कुछ दिनों से बंद फिर से जुड़ गया है सिलसिला। यह मधुर सौगात वैसे तो अचानक मिल गई मिल रहा किन्तु हमको स्वाद […]

बदल गया है गाँवःधीरज श्रीवास्तव

बदल गया है गाँवःधीरज श्रीवास्तव डाउनलोड ई-पत्रिका (पीडीऍफ़) बदल गये हैं मंजर सारे बदल गया है गाँव प्रिये! मोहक ऋतुएँ नहीं रही अब साथ तुम्हारे चली गईं! आशाएँ भी टूट गईं जब हाथ तुम्हारे छली गईं! बूढ़ा पीपल वहीं खड़ा पर नहीं रही वह छाँव प्रिये। पोर-पोर अंतस का दुखता दम घुटता पुरवाई में! रो […]

बात करने दो/मयंक श्रीवास्तव

और कितने दिन अभी मेरी जरूरत है तुम मुझे अनुयायियों से बात करने दो। पांव बंध पाए नहीं मेरे शिथिलता से हर डगर पर चल रहे अब भी सुगमता से साथ मेरा और कितने दिन निभाएंगी तुम मुझे परछाइयों से बात करने दो। बात करने दो गग्न धरती हवाओं से भावनाओं से कलम से वेदनाओं […]

पुनः शकुनि की कपट-चाल से, एक युधिष्ठिर छला गया है/राहुल द्विवेदी ‘स्मित’

पुनः शकुनि की कपट-चाल से, एक युधिष्ठिर छला गया है। घर-घर वही हस्तिनापुर सी, कुटिल विसातें बिछी हुई हैं। चौसर-चौसर छल-छद्मों से, ग्रसित गोटियाँ सजी हुई हैं। दरबारी हैं विवश सभा में, कौन धर्म का पासा फेंके कौन न्याय-अन्याय बताये, सबकी आँखें झुकी हुई हैं। लगता है चेहरों पर इनके, रंग स्वार्थ का मला गया […]

जानते सब धर्म आँसू/धीरज श्रीवास्तव

जानते सब धर्म आँसू। वेदना के मर्म आँसू। चाँद पर हैं ख्वाब सारे हम खड़े फुटपाथ पर! खींचते हैं बस लकीरें रोज अपने हाथ पर! क्या करे ये ज़िन्दगी भी आँख के हैं कर्म आँसू। जानते सब धर्म आँसू। वेदना के मर्म आँसू। आज वर्षों बाद उनकी याद है आई हमें! फिर वही मंजर दिखाने […]

घर का कोना कोना अम्मा/धीरज श्रीवास्तव

अपने घर का हाल देखकर,चुप रहना मत रोना अम्मा । सन्नाटे में बिखर गया है,घर का कोना कोना अम्मा । खेत और खलिहान बिक गये इज्जत चाट रही माटी ! अलग अलग चूल्हों में मिलकर भून रहे सब परिपाटी ! नज़र लगी जैसे इस घर को,या कुछ जादू टोना अम्मा । सन्नाटे में बिखर गया […]

बदल दिया परिदृश्य गाँव का/राहुल द्विवेदी स्मित’

  बदल दिया परिदृश्य गाँव का, फैशन की अंगड़ाई ने। खेत बेंचकर पल्सर ले ली, बुद्धा और कन्हाई ने।। मुन्नी जीन्स पहनकर घूमे, लौटन की फटफटिया पर। सेल्फी लेती नयी बहुरिया, द्वारे बैठी खटिया पर। लाज, शर्म, घूघट, खा डाला, इस टीवी हरजाई ने।। धोती-कुर्ते संदूको में, धूल समय की फाँक रहे। कोट पैंट सदरी […]

सौंप जो मुझको गये थे/राहुल द्विवेदी स्मित’

सौंप जो मुझको गये थे, क्षण कभी अनुराग के तुम मैं उन्हीं सुधियों के’ कोमल, गीत गाता चल रहा हूँ जब कभी विश्वास डोले, मीत मुड़कर देख लेना।। कब भला आसान होता, आग साँसों की बुझाना। सागरों का नीर खारा, नित्य पीना, मुस्कुराना। किन्तु तुम लेकर गये थे, जो वचन उसके लिए ही, कहकहों में […]