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काव्य-गीत-पद्य

सर्वोत्तम उद्योग/अवनीश सिंह चौहान

छार-छार हो पर्वत दुख का ऐसा बने सुयोग गलाकाट इस ‘कंप्टीशन’ में मुश्किल सर्वप्रथम आ जाना शिखर पा गए किसी तरह तो मुश्किल है उस पर टिक पाना   सफल हुए हैं इस युग में जो ऊँचा उनका योग   बड़ी-बड़ी ‘गाला’ महफिल में कितनी हों भोगों की बातें और कहीं टपरे के नीचे सिकुड़ी […]

रेल- ज़िंदगी/अवनीश सिंह चौहान

एक ट्रैक पर रेल ज़िंदगी कब तक? कितना सफ़र सुहाना   धक्का-मुक्की भीड़-भड़क्का बात-बात पर चौका-छक्का   चोट किसी को लेकिन किसकी ख़त्म कहानी किसने जाना   एक आदमी दस मन अंडी लदी हुई है पूरी मंडी   किसे पता है कहाँ लिखा है किसके खाते आबोदाना   बिना टिकट छुन्ना को पकड़े रौब झाड़ […]

चिंताओं का बोझ-ज़िंदगी/अवनीश सिंह चौहान

सत्ता पर क़ाबिज़ होने को कट-मर जाते दल आज सियासत सौदेबाजी जनता में हलचल   हवा चुनावी आश्वासन के लड्डू दिखलाए खलनायक भी नायक बनकर संसद पर छाए   कैसे झूठ खुले, अँजुरी में- भरते गंगा-जल   लाद दिए पिछले वादों पर और नये कुछ वादे चिंताओं का बोझ-ज़िंदगी कोई कब तक लादे   जिये-मरे, […]

श्रम की मण्डी/अवनीश सिंह चौहान

  बिना काम के ढीला कालू मुट्ठी- झरती बालू   तीन दिनों से आटा गीला हुआ भूख से बच्चा पीला   जो भी देखे, घूरे ऐसे ज्यों शिकार को भालू   श्रम की मंडी खड़ा कमेसुर बहुत जल्द बिकने को आतुर   भाव मजूरी का गिरते ही पास आ गए लालू   बीन कमेसुर रहा […]

विज्ञापन की चकाचौंध/अवनीश सिंह चौहान

  सुनो ध्यान से कहता कोई विज्ञापन के पर्चों से   हम जिसका निर्माण करेंगे तेरी वही जरूरत होगी जस-जस सुरसा बदनु बढ़ावा तस-तस कपि की मूरत होगी   भस उड़ती हो, आँख भरी हो लेकिन डर मत मिर्चों से   हमें न मंहगाई की चिंता नहीं कि तुम हो भूखे-प्यासे तुमको मतलब है चीजों […]

कोरोना का डर है लेकिन/अवनीश सिंह चौहान

कोरोना का डर है लेकिन डर-सी कोई बात नहीं   धूल, धुआँ, आँधी, कोलाहल ये काले-काले बादल जूझ रहे जो बड़े साहसी युगों-युगों का लेकर बल   इस विपदा का प्रश्न कठिन, हल अब तक कुछ भी ज्ञात नहीं   लोग घरों से निकल रहे हैं सड़कों पर, फुटपाथों पर एक भरोसा खुद पर दूजा […]

पीते-पीते आज करीना/अवनीश सिंह चौहान

  पीते-पीते आज करीना बात पते की बोल गयी   यह तो सच है शब्द हमारे होते हैं घर-अवदानी घर जैसे कलरव बगिया में मीठा नदिया का पानी   मृदु भाषा में एक अजनबी का वह जिगर टटोल गयी   प्यार-व्यार तो एक दिखावा होटल के इस कमरे में नज़र बचाकर मिलने में भी मिलना […]

पगडंडी/अवनीश सिंह चौहान

सब चलते चौड़े रस्ते पर पगडंडी पर कौन चलेगा?   पगडंडी जो मिल न सकी है राजपथों से, शहरों से जिसका भारत केवल-केवल खेतों से औ’ गाँवों से   इस अतुल्य भारत पर बोलो सबसे पहले कौन मरेगा?   जहाँ केन्द्र से चलकर पैसा लुट जाता है रस्ते में और परिधि भगवान भरोसे रहती ठण्डे […]

बदरा आए/अवनीश सिंह चौहान

  धरती पर है धुंध, गगन में घिर-घिर बदरा आए   लगे इन्द्र की पूजा करने नम्बर दो के जल से पाप-बोध से भरी धरा पर बदरा क्योंकर बरसे कृपा-वृष्टि हो बेकसूर पर हाँफ रहे चैपाए   हुए दिगम्बर पेड़, परिन्दे- हैं कोटर में दुबके नंगे पाँव फँसा भुलभुल में छोटा बच्चा सुबके धुन कजरी […]

देवी धरती की/अवनीश सिंह चौहान

दूब देख लगता यह सच्ची कामगार धरती की   मेड़ों को साध रही है खेतों को बाँध रही है कटी-फटी भू को अपनी- ही जड़ से नाथ रही है कोख हरी करती है सूनी पड़ी हुई परती की   दबकर खुद तलवों से यह तलवों को गुदगुदा रही ग्रास दुधरू गैया का परस रहा है […]

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