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कहानी

करवा का व्रत/यशपाल

कन्हैयालाल अपने दफ्तर के हमजोलियों और मित्रों से दो तीन बरस बड़ा ही था, परन्तु ब्याह उसका उन लोगों के बाद हुआ। उसके बहुत अनुरोध करने पर भी साहब ने उसे ब्याह के लिए सप्ताह-भर से अधिक छुट्टी न दी थी। लौटा तो उसके अन्तरंग मित्रों ने भी उससे वही प्रश्न पूछे जो प्रायः ऐसे […]

खुदा की मदद/यशपाल

उबेदुल्ला ‘मेव’ और सैयद इम्तियाज अहमद हाई स्कूल में एक साथ पढ़ रहे थे। उबेद छुट्टी के दिनों में गाँव जाकर अपने गुजारे के लिये अनाज और कुछ घी ले आता। रहने के लिये उसे इम्तियाज अहमद की हवेली में एक खाली अस्तबल मिल गया था। इम्तियाज का बहुत-सा समय कनकैयाबाजी, बटेरबाजी, सिनेमा देखने और […]

तुमने क्यों कहा था, मैं सुन्दर हूँ/यशपाल

लौटते समय डॉक्टर साहब माया के जेठ, उनके पड़ोसी निगम और निगम की माँ ‘चाची’ सबसे अपील कर जाते — “आप लोग इन्हें समझाइये… कुछ खिलाइये, पिलाइये और हंसाइये।” निगम साधारणतः स्वस्थ, परिश्रमी और महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति है। वह चित्रकार है। पिछले वर्ष दिसम्बर में वह अमरीका में होने वाली एक प्रदर्शनी में भेजने के लिए […]

परदा/यशपाल

चौधरी पीरबख्श के दादा चुंगी के महकमे में दारोगा थे । आमदनी अच्छी थी । एक छोटा, पर पक्का मकान भी उन्होंने बनवा लिया । लड़कों को पूरी तालीम दी । दोनों लड़के एण्ट्रेन्स पास कर रेलवे में और डाकखाने में बाबू हो गये । चौधरी साहब की ज़िन्दगी में लडकों के ब्याह और बाल-बच्चे […]

फूलो का कुर्ता/यशपाल

हमारे यहां गांव बहुत छोटे-छोटे हैं। कहीं-कहीं तो बहुत ही छोटे, दस-बीस घर से लेकर पांच-छह घर तक और बहुत पास-पास। एक गांव पहाड़ की तलछटी में है तो दूसरा उसकी ढलान पर। बंकू साह की छप्पर से छायी दुकान गांव की सभी आवश्कताएं पूरी कर देती है। उनकी दुकान का बरामदा ही गांव की […]

महादान/यशपाल

सेठ परसादीलाल टल्लीमल की कोठी पर जूट का काम होता था। लड़ाई शुरू होने पर जापान और जर्मनी की खरीद बंद हो गई। जहाजों को दुश्मन की पनडुब्बियों का भय था; अमेरिका भी माल न जा पाता। आखिर रकम का क्या होता? सरकार धड़ाधड़ नोट छापे जा रही थी। ब्याज की दर रोज-रोज गिर रही […]

सच बोलने की भूल/यशपाल

शरद के आरम्भ में दफ्तर से दो मास की छुट्टी ले ली थी। स्वास्थ्य सुधार के लिए पहाड़ी प्रदेश में चला गया था। पत्नी और बेटी भी साथ थीं। बेटी की आयु तब सात वर्ष की थी। उस प्रदेश में बहुत छोटे-छोटे पड़ाव हैं। एक खच्चर किराये पर ले लिया था। असबाब खच्चर पर लाद […]

ज्ञानदान/यशपाल

महर्षि दीर्घलोम प्रकृति से ही विरक्त थे। गृहस्थ आश्रम में वे केवल थोड़े ही समय के लिए रह पाये थे। उस समय ऋषि पत्नी ने एक कन्यारत्न प्रसव किया था । महर्षि भ्रम और मोह के बन्धनों को ज्ञान की अग्नि में भस्म कर, वैराग्य साधना द्वारा मुक्ति पाने के लिए नर्मदा तीर पर एक […]

आदमी का बच्चा/यशपाल

दो पहर तक डौली कान्वेंट (अंग्रेज़ी स्कूल) में रहती है। इसके बाद उसका समय प्रायः पाया ‘बिंदी’ के साथ कटता है। मामा दोपहर में लंच के लिए साहब की प्रतीक्षा करती है। साहब जल्दी में रहते हैं। ठीक एक बजकर सात मिनट पर आये, गुसलखाने में हाथ-मुंह धोया, इतने में मेज पर खाना आ जाता […]

कुत्ते की पूँछ/यशपाल

श्रीमती जी कई दिन से कह रही थीं- “उलटी बयार” फ़िल्म का बहुत चर्चा है, देख लेते तो अच्छा था। देख आने में ऐतराज़ न था परन्तु सिनेमा शुरू होने के समय अर्थात साढ़े छः बजे तक तो दफ़्तर के काम से ही छुट्टी नहीं मिल पाती। दूसरे शो में जाने का मतलब है- बहुत […]