प्रश्न/कविता/रवीन्द्र उपाध्याय
नहीं गढ़े चाक पर हमने सूरज, चाँद और मिलती है हमें ढेर धूप-चाँदनी मौसम नहीं सजाये हमने और सेंकता है जेठ भिंगोता है सावन हमें भी हमारे हाँके नहीं चलती बयार और साँस लेने के लिए पूरे आज़ाद हैं हम अनाज, हाँ पसीने से सींच-सींच हमने उगाये हैं अनाज तब भी दाने-दाने को क्यों हैं […]