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सजल

महकी है यह रजनीगंधा/सजल/वसंत जमशेदपुरी

महकी है यह रजनीगंधा या तेरे तन की खुशबू है | अलकें लहराईं हैं तूने या चंदन-वन की खुशबू है || तेरी इस उन्मुक्त हँसी पर तीनों लोक निछावर शुभदे | तेरे अधरों से निःसृत यह नंदन कानन की खुशबू है || कस्तूरी-मृग-सा चंचल मैं इधर-उधर नजरें दौड़ाऊँ | अब तक समझ नहीं पाया क्यों […]

हर अँधेरी वीथिका को जगमगाना चाहता हूँ/सजल/वसंत जमशेदपुरी

हर अँधेरी वीथिका को जगमगाना चाहता हूँ | गीत कोई प्रीति का मैं गुनगुनाना चाहता हूँ || प्रीति हो तो राधिका-सी कुछ न चाहा श्याम से | प्रीति की यह रीति ही सबको सिखाना चाहता हूँ || दूर तुम मुझसे रहो स्वीकार यह मुझको नहीं | जिस तरह भी हो जुगत मैं पास आना चाहता […]

सुबह-सुबह कोयल का गाना/सजल/वसंत जमशेदपुरी

सुबह-सुबह कोयल का गाना,अच्छा लगता है | प्रियजन से मिलना-बतियाना,अच्छा लगता है || रजनीगंधा,जुही,चमेली,शेफाली महके | उपवन में भँवरों का आना, अच्छा लगता है || उसकी गलियों में गुल चुनना, कौन नहीं चाहे | दामन में खुशबू भर लाना,अच्छा लगता है || कलियों-सा मुस्काना उसका,शहदीली बातें | बात-बात पर खिल-खिल जाना अच्छा लगता है || […]

घुमड़ रहे हैं घन विकराले/सजल/नन्दिता माजी शर्मा

घुमड़ रहे हैं घन विकराले। दबे जा रहे विमल उजाले।। साधु-संत-मुनि ध्यानमग्न सब। काम,लोभ, मद मन में पाले।। कम कृतित्व है अधिक दिखावा। अधजल-गगरी नीर उछाले।। लाल महावर सजा पगों में। झाँक रहे हैं तलवे काले।। ढोल पीटते पर-दोषों का। निज पर लोगों के मुख ताले।। विवश क्षुधा से भिक्षु विकल है। नालों में नित […]

जिंदगी/सजल/नन्दिता माजी शर्मा

जिंदगी यह जीत भी है हार भी। फूल भी है और यह अंगार भी।। हर तरफ आघात ही आघात है। अब नहीं दिखता कहीं उपकार भी।। कर्म से ही हो सफल संकल्प शुभ। गूँज जाती जीत की गुंजार भी।। हो समर्पित मन-वचन-कर्म से मनुज। मोड़ देता है समय की धार भी।। एक छोटी चूक कर […]