महकी है यह रजनीगंधा/सजल/वसंत जमशेदपुरी
महकी है यह रजनीगंधा या तेरे तन की खुशबू है | अलकें लहराईं हैं तूने या चंदन-वन की खुशबू है || तेरी इस उन्मुक्त हँसी पर तीनों लोक निछावर शुभदे | तेरे अधरों से निःसृत यह नंदन कानन की खुशबू है || कस्तूरी-मृग-सा चंचल मैं इधर-उधर नजरें दौड़ाऊँ | अब तक समझ नहीं पाया क्यों […]