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यात्रावृत

काबुल/यशपाल

प्राहा में लेखक कांग्रेस के समय जर्मन कवि जिमरिंग से परिचय हुआ था। प्रसंग में बात चली कि मैं कुछ समय के लिए जर्मनी जा सकूँगा या नहीं। बर्लिन देखने की उत्‍सुकता मुझे स्‍वयं थी। तीसरे-चौथे दिन ही प्राहा में पूर्वी जर्मनी के राजदूतावास के एक सज्‍जन ने आकर बात की – ‘प्राहा से बर्लिन […]

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