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पद्य

थोड़ी-थोड़ी बचा के रक्खी है,/गज़ल/संगीता श्रीवास्तव ‘सुमन’

थोड़ी-थोड़ी बचा के रक्खी है, अपनी हस्ती बचा के रक्खी है। मैंने ख़ुद में बड़े सलीक़े से, एक लड़की बचा के रक्खी है। थोड़ी गुमसुम सी खोई-खोई वो, कट्टी-बट्टी बचा के रक्खी है। सारे गुलशन के रंग हैं जिसमें, ऐसी तितली बचा के रक्खी है। उस पे कब्ज़ा कभी न होने दिया, दिल की दिल्ली […]

कोई शायद मलाल था क्या था/गज़ल/संगीता श्रीवास्तव ‘सुमन’

कोई शायद मलाल था क्या था लब पे उसके सवाल था क्या था आ गई मैं भी उसकी बातों में इश्क़ था दिल निहाल था क्या था मेरी आंखों में बो गया जुगनू ख़्वाब मेरा कमाल था क्या था चांद छूने की इक तमन्ना थी उसका चेहरा हिलाल था क्या था तब मरासिम थे आशिकी […]

इक चाय पे मिलती हैं दो अनजान निगाहें/गज़ल/संगीता श्रीवास्तव ‘सुमन’

इक चाय पे मिलती हैं दो अनजान निगाहें चुस्की से ही कर लेती हैं पहचान निगाहें जैसे तेरे रुखसार पे दरबान निगाहें वैसे ही मेरे इश्क़ की पहचान निगाहें सीने में तेरे दफ़्न कई आह-ओ-फ़ुगाँ से पल भर में उठा दें कई तूफ़ान निगाहें ये जानती हूँ मैं भी छुपाते हो बहुत कुछ इतनी भी […]

माथे पर इक सजा लिया सूरज/गज़ल/संगीता श्रीवास्तव ‘सुमन’

माथे पर इक सजा लिया सूरज अपनी बिंदिया बना लिया सूरज दिन चढ़ा हमने पा लिया सूरज फिर फ़लक ने सजा लिया सूरज रूठी क़िस्मत बनाने की ख़ातिर जुगनू बोकर उगा लिया सूरज एक हिस्से में चांद को रक्खा एक हिस्सा बना लिया सूरज ज़िंदगी चिलचिला गई जब भी साथ उसने जला लिया सूरज रोशनी […]

जब से इसमें ग़म ज़ियादा हो गया/गज़ल/संगीता श्रीवास्तव ‘सुमन’

जब से इसमें ग़म ज़ियादा हो गया एक दिल था आधा-आधा हो गया हम पे ऐसे हिज्र का मंज़र खुला मैं अकेली थी वो तन्हा हो गया इश्क़ करना अपने बस में था कहां जुर्म हम से बे- इरादा हो गया दो क़दम भी साथ आ पाए न हम और मुख़ालिफ़ ये ज़माना हो गया […]

बिना क़ुसूर सज़ा भी सुनानी पड़ती है/गज़ल/संगीता श्रीवास्तव ‘सुमन’

बिना क़ुसूर सज़ा भी सुनानी पड़ती है महब्बतों की कहानी बतानी पड़ती है बिना कमाए गंवाने का लुत्फ़ भी तो नहीं सुना है इसलिए इज़्ज़त कमानी पड़ती है वफ़ा की डोली में है एतबार की दुल्हन ख़ुलूस-ओ-प्यार की दुनिया बनानी पड़ती है फंसे हुए हैं बदी के हिसार में हम सब मगर ये सच है […]

अग्नि परीक्षा जैसी ज़हमत होती है/गज़ल/संगीता श्रीवास्तव ‘सुमन’

अग्नि परीक्षा जैसी ज़हमत होती है तब जाकर सोने की क़ीमत होती है फूँक फूँक कर जो पीते हैं छाछ यहाँ उनकी तो हर बात नसीहत होती है नुक़्ताचीनी ,लफ़्फ़ाज़ी , जुमलेबाज़ी सबकी अपनी-अपनी फ़ितरत होती है एक हक़ीक़त एक फ़साना हो जैसे जिनसे क़ुर्बत उनसे नफ़रत होती है देख आइना कैसा चकनाचूर हुआ कैसी […]

रात भी पूछती है कमरे में/गज़ल/संगीता श्रीवास्तव ‘सुमन’

रात भी पूछती है कमरे में क्यूं ये बाती जली है कमरे में हर तरफ़ चांदनी है कमरे में रोशनी आ रही है कमरे में गूंजती इक हंसी है कमरे में इक तिलस्मी छड़ी है कमरे में टिकटिका कर मुझे बुलाती है ये घड़ी क्यूं लगी है कमरे में बिन तिरे कुछ नहीं संभलता है […]

मिरे ग़म में तू गर शामिल नहीं है/गज़ल/संगीता श्रीवास्तव ‘सुमन’

मिरे ग़म में तू गर शामिल नहीं है किसी सूरत सुकूने दिल नहीं है जो कश्ती को भंवर से खींच लाए किसी दरिया का वो साहिल नहीं है गुज़रते हैं कई दिन रात मुझमें ये थोड़ी देर की झिल मिल नहीं है सजा कर देख ली हम ने भी दुनिया ये दुनिया प्यार के क़ाबिल […]

लोग होते तो हैं अंदाज़ दिखाने वाले/गज़ल/संगीता श्रीवास्तव ‘सुमन’

लोग होते तो हैं अंदाज़ दिखाने वाले हम को आए ही नहीं तौर ज़माने वाले जाने कब खो गए दिन रात हंसाने वाले “ज़िंदगी क्या हुए वो अपने ज़माने वाले” मिल भी जाते कभी वो यार पुराने वाले मेरी आवाज़ से आवाज़ मिलाने वाले दोस्ती का वो यक़ीं हमको दिलाने वाले धोका देते हैं हमें […]

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