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पद्य

थी न हिम्मत ही तो पर क्या करते/ग़ज़ल/अंजू केशव

थी न हिम्मत ही तो पर क्या करते हम हवाओं में सफर क्या करते लोग ले कर चले आते हैं नमक कहिए जख्मों की खबर क्या करते लत गुहर की न लहर की ही रही तो समंदर में उतर क्या करते दीद का है न जुनून अब कोई देख कर बंद वो दर क्या करते […]

आपने झूठ को ही बाना बना रक्खा है/ग़ज़ल/अंजू केशव

आपने झूठ को ही बाना बना रक्खा है रूप यूँ अपना फ़क़ीराना बना रक्खा है अपने हर शौक़ को तब्दील नशे में है किया ज़िंदगी! तुमको भी मय ख़ाना बना रक्खा है कुछ ज़ियादा ही समझने लगे हैं हम उसको जब से उसने हमें बेगाना बना रक्खा है है जो इंकार लगातार तेरी आँखों में […]

शिकार सूर्य-चाँद के है साज़िशों का आसमां/ग़ज़ल/अंजू केशव

शिकार सूर्य-चाँद के है साज़िशों का आसमां बढ़ी फिर आज तारों के दिलों के बीच दूरियाँ था आदमी की रग में रब रवाँ तो ख़ून सा सदा पर उसको ढूँढते रहे न जाने हम कहाँ-कहाँ कभी जला कभी बुझा दिया तो था दिया ही पर जला तो था वो रोशनी बुझा तो बस धुआँ-धुआ लगे […]

कोई है साथ पर साथी नहीं है/ग़ज़ल/अंजू केशव

कोई है साथ पर साथी नहीं है दिल ऐसे रिश्तों का क़ैदी नहीं है भले ही आप नावाकिफ हों खुद से मुझे कोई गलतफहमी नहीं है थकन है सो उतर जाएगी जल्दी मगर हिम्मत अभी हारी नहीं है किसी की जान का क्या रब्त इससे किसी के माथे पर बिंदी नहीं है दुबारा स्नेह माँ […]

न ही हिंदू मुसलमां सिक्ख  ईसाई समझते हैं /ग़ज़ल/अंजू केशव

न ही हिंदू मुसलमां सिक्ख  ईसाई समझते हैं किसी मज़हब की कीमत कब ये बलवाई समझते हैं हुनर होता है ये भी इक बना देना पहाड़ उसका सभी जिस बात को छोटी सी बस राई समझते हैं है जिनकी ज़िंदगी का अर्थ बस दो जून की रोटी बताएँगे वही अच्छे से मँहगाई समझते हैं अभी […]

चार पल भी जो गुज़र जाते हैं मनमानी के साथ /ग़ज़ल/अंजू केशव

चार पल भी जो गुज़र जाते हैं मनमानी के साथ उम्र सारी फिर तो कट जाती है आसानी के साथ ज़हनियत में फँस गई तो होगी बोझिल जिंदगी हैं मज़ा इसका भी असली सिर्फ नादानी के साथ कोशिशें करना हमारा है अमल करते भी हैं पर मिटी है कब लिखी तहरीर पेशानी के साथ दोस्ती […]

ज़िंदगी नें आजमाया है बहुत /ग़ज़ल/अंजू केशव

ज़िंदगी नें आजमाया है बहुत सब्र नें भी पर बचाया है बहुत है जवाबों का थकन से चूर तन सर सवालों नें उठाया है बहुत एक मौक़ा हम थे सबके वास्ते और सबने ही भुनाया है बहुत आज पैरों पर खड़ा है हौसला ये भी लेकिन लड़खड़ाया है बहुत पूछते हैं लोग जब क्या हाल […]

नींद सर थपथपाती रही रात भर/ग़ज़ल/अंजू केशव

नींद सर थपथपाती रही रात भर फ़र्ज़ अपना निभाती रही रात भर दर्द का एक सूरज उगा रात में धूप फिर चिलचिलाती रही रात भर जब अँधेरे में था साथ कोई नहीं तो दिया संग बाती रही रात भर शब्द उनके तो सारे थे मन पर खुदे और ख़त मैं जलाती रही रात भर कर्ज़ […]

अकेले हम जो ख़ुद को आज़माने के लिए निकले/ग़ज़ल/अंजू केशव

अकेले हम जो ख़ुद को आज़माने के लिए निकले इरादे भी हमारे साथ आने के लिए निकले सुकून इतना था अंदर लग रहा था लाश हैं इक हम तो थोड़ा आज बाहर छटपटाने के लिए निकले नशे में आदमी थे जो उन्हें थी कब खबर इसकी वो घर से बारहा बस लड़खड़ाने के लिए निकले […]

दिखाना ख़ुद को है तो यूँ दिखाएँ/ग़ज़ल/अंजू केशव

दिखाना ख़ुद को है तो यूँ दिखाएँ हथेली पर कभी सरसों जमाएँ भला क्यों भूख का मातम करें हम न क्यों मिल चाँद को रोटी बनाएँ अगर ख़्वाहिश बहुत है तैरने की समंदर में अकेले कूद जाएँ दिया है कान भी भगवान ने जब हमेशा जीभ क्यों अपनी चलाएँ बहुत है राह सीधी ज़िंदगी की […]

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