+91-9997111311,    support@sahityaratan.com

पद्य

ख़ून के आंसू यतीमों को रुलाते रहिए/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

ख़ून के आंसू यतीमों को रुलाते रहिए प्यास अपनी इसी दरिया से बुझाते रहिए भूख अब भी न मिटी हो तो सियासतदानो! यूं ही कश्मीर को हर रोज़ जलाते रहिए हुस्न कश्मीर का हर रंग के फूलों से है इसको हर रंग के फूलों से सजाते रहिए चंद ताजिर वो विदेशों से बुला लाये हैं […]

काम अक्सर वो सियासत से लिया करते हैं/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

काम अक्सर वो सियासत से लिया करते हैं ख़ास मकसद से हमें बांट दिया करते हैं अब तो हम अपने मुहाफ़िज़ की पनाहों में भी मौत की बांहों में दिन रात जिया करते हैं हमको आता ही नहीं झूठी बड़ाई करना दिल जो कहता है वही काम किया करते हैं तुम किसी और के कासे […]

जिंदगी का खोखलापन झांक कर देखेगा कौन/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

जिंदगी का खोखलापन झांक कर देखेगा कौन ‘लोग तो फल-फूल देखेंगे शेर देखेगा कौन दश्त बे आबो-शजर है उस पे सूरज का जलाल तेज़ चलना है तो आदाबे-सफ़र देखेगा कौन गो अधूरी है रह गयी है उस परिंदे की उड़ान पुतलियों में ख़्वाब ज़िंदा है मगर देखेगा कौन सिर्फ़ ये सूखे हुए पत्ते नहीं हैं, […]

सैंकड़ो उन्वान देकर इक फ़साना बट गया/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

सैंकड़ो उन्वान देकर इक फ़साना बट गया अब तो पुरखों का मकां भी ख़ाना ख़ाना बंट गया आज से पहले कभी आबो-हवा ऐसी न थी दिल बटा, नफ़रत बटी, फिर आशियाना बट गया शाम थी तो साथ थे सब दिन निकलते क्या हुआ पेड़ के हर इक परिंदे का ठिकाना बट गया क़ौमी यकजहती का […]

बात ख़ासो-आम का बिंदास रखती है ग़ज़ल/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

बात ख़ासो-आम का बिंदास रखती है ग़ज़ल दर्द के अनुवाद में विश्वास रखती है ग़ज़ल शब्द में हैं इक थिरकते मोर की सी मस्तियां बह्र को बहती नदी के पास रखती है ग़ज़ल बर्फ़ के घर में ठिठुरते आदमी के ज़ेह्न में एक टुकड़ा धूप का एहसास रखती है ग़ज़ल हर अंधेरी झोपड़ी में रौशनी […]

काश यूँ हो कि मेरा प्यार ग़ज़ल हो जाए/ग़ज़ल/ए.एफ़. ’नज़र’

काश यूँ हो कि मेरा प्यार ग़ज़ल हो जाए, मैं पढ़ूँ और वो जफ़ाकार ग़ज़ल हो जाए। मैं जो दीवाना हुआ हूँ तो अजब क्या है सनम, नाम लिख दूँ तेरा दीवार ग़ज़ल हो जाए। ये सिफ़त तेरी मुहब्बत ने अता की है मुझे, लब पे मैं रख लूँ तो अंगार ग़ज़ल हो जाए। मुझपे […]

चराग़-फूल-सितारों की जान ले ली है/ग़ज़ल/ए.एफ़. ’नज़र’

चराग़-फूल-सितारों की जान ले ली है, तेरी अदाओं ने कितनों की जान ले ली है। तुम्हारी सुर्ख़ हँसी पर निसार हैं कलियाँ, तुम्हारे होंठों ने फूलों की जान ले ली है। न फूल महके न पेड़ों पे कोयलें बोलीं, तेरे ग़मों ने बहारों की जान ले ली है। वो चाहते थे कि दरिया को बाँध […]

राम जाने ये कैसी बस्ती है/ग़ज़ल/ए.एफ़. ’नज़र’

राम जाने ये कैसी बस्ती है, छत गिरे तो दिवार हँसती है। हम उन्हीं मौसमों के पाले हैं, धूप जब छाँव को तरसती है। ज़िन्दगी की तमाम जद्दोजहद, धूप में पानियों की मस्ती है। इन चमकते हुए सवेरों से, रात ही रात क्यूँ बरसती है। जाने क्या आप ढूँढ़ते हैं यहाँ, दिल अजायब घरों की […]

कौन होता है फ़लक तेरे के बराबर पैदा/ग़ज़ल/ए.एफ़. ’नज़र’

कौन होता है फ़लक तेरे के बराबर पैदा, आदमी आप ही करता है मुक़द्दर पैदा। रास्ता जिनको समन्दर ने दिया ख़ुद झुककर, इसी मिट्टी में हुए हैं वो कलन्दर पैदा। हौसला तो मेरा ऊँचा है गगन तुझसे भी, क्या है जो क़द न हुआ तेरे बराबर पैदा। अब किसी बात पे हैरत नहीं होती हमको, […]

छत से छत की मीठी बातें और अपनापन छीन लिया/ग़ज़ल/ए.एफ़. ’नज़र’

छत से छत की मीठी बातें और अपनापन छीन लिया, फ़्लैटों की तहज़ीब ने हमसे चौड़ा आँगन छीन लिया। शहर की रोशन गलियो तुमको अपना दुख क्या बतलाएँ, रोटी कर फ़िक्रों ने हमसे गाँव का सावन छीन लिया। रूखी-सूखी जो मिलती सब भाई बाँट के खाते थे, अहदे तरक़्क़ी ऐसा आया सब अपनापन छीन लिया। […]

×