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ग़ज़ल

ज़िंदगी नें आजमाया है बहुत /ग़ज़ल/अंजू केशव

ज़िंदगी नें आजमाया है बहुत सब्र नें भी पर बचाया है बहुत है जवाबों का थकन से चूर तन सर सवालों नें उठाया है बहुत एक मौक़ा हम थे सबके वास्ते और सबने ही भुनाया है बहुत आज पैरों पर खड़ा है हौसला ये भी लेकिन लड़खड़ाया है बहुत पूछते हैं लोग जब क्या हाल […]

नींद सर थपथपाती रही रात भर/ग़ज़ल/अंजू केशव

नींद सर थपथपाती रही रात भर फ़र्ज़ अपना निभाती रही रात भर दर्द का एक सूरज उगा रात में धूप फिर चिलचिलाती रही रात भर जब अँधेरे में था साथ कोई नहीं तो दिया संग बाती रही रात भर शब्द उनके तो सारे थे मन पर खुदे और ख़त मैं जलाती रही रात भर कर्ज़ […]

अकेले हम जो ख़ुद को आज़माने के लिए निकले/ग़ज़ल/अंजू केशव

अकेले हम जो ख़ुद को आज़माने के लिए निकले इरादे भी हमारे साथ आने के लिए निकले सुकून इतना था अंदर लग रहा था लाश हैं इक हम तो थोड़ा आज बाहर छटपटाने के लिए निकले नशे में आदमी थे जो उन्हें थी कब खबर इसकी वो घर से बारहा बस लड़खड़ाने के लिए निकले […]

दिखाना ख़ुद को है तो यूँ दिखाएँ/ग़ज़ल/अंजू केशव

दिखाना ख़ुद को है तो यूँ दिखाएँ हथेली पर कभी सरसों जमाएँ भला क्यों भूख का मातम करें हम न क्यों मिल चाँद को रोटी बनाएँ अगर ख़्वाहिश बहुत है तैरने की समंदर में अकेले कूद जाएँ दिया है कान भी भगवान ने जब हमेशा जीभ क्यों अपनी चलाएँ बहुत है राह सीधी ज़िंदगी की […]

थोड़ी-थोड़ी बचा के रक्खी है,/गज़ल/संगीता श्रीवास्तव ‘सुमन’

थोड़ी-थोड़ी बचा के रक्खी है, अपनी हस्ती बचा के रक्खी है। मैंने ख़ुद में बड़े सलीक़े से, एक लड़की बचा के रक्खी है। थोड़ी गुमसुम सी खोई-खोई वो, कट्टी-बट्टी बचा के रक्खी है। सारे गुलशन के रंग हैं जिसमें, ऐसी तितली बचा के रक्खी है। उस पे कब्ज़ा कभी न होने दिया, दिल की दिल्ली […]

कोई शायद मलाल था क्या था/गज़ल/संगीता श्रीवास्तव ‘सुमन’

कोई शायद मलाल था क्या था लब पे उसके सवाल था क्या था आ गई मैं भी उसकी बातों में इश्क़ था दिल निहाल था क्या था मेरी आंखों में बो गया जुगनू ख़्वाब मेरा कमाल था क्या था चांद छूने की इक तमन्ना थी उसका चेहरा हिलाल था क्या था तब मरासिम थे आशिकी […]

इक चाय पे मिलती हैं दो अनजान निगाहें/गज़ल/संगीता श्रीवास्तव ‘सुमन’

इक चाय पे मिलती हैं दो अनजान निगाहें चुस्की से ही कर लेती हैं पहचान निगाहें जैसे तेरे रुखसार पे दरबान निगाहें वैसे ही मेरे इश्क़ की पहचान निगाहें सीने में तेरे दफ़्न कई आह-ओ-फ़ुगाँ से पल भर में उठा दें कई तूफ़ान निगाहें ये जानती हूँ मैं भी छुपाते हो बहुत कुछ इतनी भी […]

माथे पर इक सजा लिया सूरज/गज़ल/संगीता श्रीवास्तव ‘सुमन’

माथे पर इक सजा लिया सूरज अपनी बिंदिया बना लिया सूरज दिन चढ़ा हमने पा लिया सूरज फिर फ़लक ने सजा लिया सूरज रूठी क़िस्मत बनाने की ख़ातिर जुगनू बोकर उगा लिया सूरज एक हिस्से में चांद को रक्खा एक हिस्सा बना लिया सूरज ज़िंदगी चिलचिला गई जब भी साथ उसने जला लिया सूरज रोशनी […]

जब से इसमें ग़म ज़ियादा हो गया/गज़ल/संगीता श्रीवास्तव ‘सुमन’

जब से इसमें ग़म ज़ियादा हो गया एक दिल था आधा-आधा हो गया हम पे ऐसे हिज्र का मंज़र खुला मैं अकेली थी वो तन्हा हो गया इश्क़ करना अपने बस में था कहां जुर्म हम से बे- इरादा हो गया दो क़दम भी साथ आ पाए न हम और मुख़ालिफ़ ये ज़माना हो गया […]

बिना क़ुसूर सज़ा भी सुनानी पड़ती है/गज़ल/संगीता श्रीवास्तव ‘सुमन’

बिना क़ुसूर सज़ा भी सुनानी पड़ती है महब्बतों की कहानी बतानी पड़ती है बिना कमाए गंवाने का लुत्फ़ भी तो नहीं सुना है इसलिए इज़्ज़त कमानी पड़ती है वफ़ा की डोली में है एतबार की दुल्हन ख़ुलूस-ओ-प्यार की दुनिया बनानी पड़ती है फंसे हुए हैं बदी के हिसार में हम सब मगर ये सच है […]

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