आदमी में आदमीयत की कमी होने लगी/ग़ज़ल/गरिमा सक्सेना
आदमी में आदमीयत की कमी होने लगी मौत से भी आज बदतर ज़िंदगी होने लगी जाल ख़ुद ही था बनाया क़ैद ख़ुद उसमें हुए फिर बताओ अब तुम्हें क्यों बेबसी होने लगी याद को अब याद करके याद भी धुँधला रही लग रहा तुमसे मिले जैसे सदी होने लगी चाँद, सूरज थे बने सबके लिये […]