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काव्य

कानन-कुसुम/काव्य/जयशंकर प्रसाद

1. प्रभो विमल इन्दु की विशाल किरणें प्रकाश तेरा बता रही हैं अनादि तेरी अन्नत माया जगत् को लीला दिखा रही हैं प्रसार तेरी दया का कितना ये देखना हो तो देखे सागर तेरी प्रशंसा का राग प्यारे तरंगमालाएँ गा रही हैं तुम्हारा स्मित हो जिसे निरखना वो देख सकता है चंद्रिका को तुम्हारे हँसने […]

लहर/काव्य/जयशंकर प्रसाद

1. लहर वे कुछ दिन कितने सुंदर थे ? जब सावन घन सघन बरसते इन आँखों की छाया भर थे सुरधनु रंजित नवजलधर से- भरे क्षितिज व्यापी अंबर से मिले चूमते जब सरिता के हरित कूल युग मधुर अधर थे प्राण पपीहे के स्वर वाली बरस रही थी जब हरियाली रस जलकन मालती मुकुल से […]

झरना/काव्य/जयशंकर प्रसाद

1. परिचय उषा का प्राची में अभ्यास, सरोरुह का सर बीच विकास॥ कौन परिचय? था क्या सम्बन्ध? गगन मंडल में अरुण विलास॥ रहे रजनी मे कहाँ मिलिन्द? सरोवर बीच खिला अरविन्द। कौन परिचय? था क्या सम्बन्ध? मधुर मधुमय मोहन मकरन्द॥ प्रफुल्लित मानस बीच सरोज, मलय से अनिल चला कर खोज। कौन परिचय? था क्या सम्बन्ध? […]

आंसू/काव्य/जयशंकर प्रसाद

आंसू इस करुणा कलित हृदय में अब विकल रागिनी बजती क्यों हाहाकार स्वरों में वेदना असीम गरजती? मानस सागर के तट पर क्यों लोल लहर की घातें कल कल ध्वनि से हैं कहती कुछ विस्मृत बीती बातें? आती हैं शून्य क्षितिज से क्यों लौट प्रतिध्वनि मेरी टकराती बिलखाती-सी पगली-सी देती फेरी? क्यों व्यथित व्योम गंगा-सी […]

कामायनी/काव्य/जयशंकर प्रसाद

चिंता सर्ग भाग-1 हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर, बैठ शिला की शीतल छाँह एक पुरुष, भीगे नयनों से देख रहा था प्रलय प्रवाह । नीचे जल था ऊपर हिम था, एक तरल था एक सघन, एक तत्व की ही प्रधानता कहो उसे जड़ या चेतन । दूर दूर तक विस्तृत था हिम स्तब्ध उसी के […]

चित्राधार/काव्य/जयशंकर प्रसाद

अयोध्या का उद्धार (महाराज रामचन्द्र के बाद कुश को कुशावती और लव को श्रावस्ती इत्यादि राज्य मिले तथा अयोध्या उजड़ गई। वाल्मीकि रामायण में किसी ऋषभ नामक राजा द्वारा उसके फिर से बसाए जाने का पता मिलता है; परन्तु महाकवि कालिदास ने अयोध्या का उद्धार कुश द्वारा होना लिखा है। उत्तर काण्ड के विषय में […]

मुक्तकी/गोपालदास नीरज

शब्द तो शोर है, तमाशा है शब्द तो शोर है, तमाशा है, भाव के सिन्धु में बताशा है, मर्म की बात होंठ से न कहो मौन ही भावना की भाषा है । देह तो सिर्फ साँस का घर है देह तो सिर्फ साँस का घर है, साँस क्या? बोलती हवा भर है, तुम मुझे अच्छा-बुरा […]

आज की रात बड़ी शोख बड़ी नटखट है/गोपालदास नीरज

आज की रात बड़ी शोख बड़ी नटखट है आज तो तेरे बिना नींद नहीं आयेगी आज तो तेरे ही आने का यहाँ मौसम है आज तबियत न ख़यालों से बहल पायेगी। देख ! वह छत पै उतर आई है सावन की घटा, खेल खिलाड़ी से रही आँख मिचौनी बिजली दर पै हाथों में लिये बाँसरी […]

उतरा है रंग बहारों का/गीत/गोपालदास नीरज

फूलों की आँखों में आँसू उतरा है रंग बहारों का लगता है आने वाला है फिर से मौसम अंगारों का। आंतरिक सुरक्षा के भय से बुलबुल ने गाना छोड़ दिया गोरी ने पनघट पर जाकर गागर छलकाना छोड़ दिया, रस का अब रास कहाँ होता है नाटक बस तलवारों का । लगता है आने वाला […]

यह प्यासों की प्रेम सभा है/गीत/गोपालदास नीरज

यह प्यासों की प्रेम सभा है यहाँ सँभलकर आना जी जो भी आये यहीं किसी का हो जाये दीवाना जी। ऐसा बरसे रंग यहाँ पर जनम-जनम तक मन भींगे फागुन बिना चुनरिया भींगे सावन बिना भवन भींगे ऐसी बारिश होय यहीं पर बचे न कोई घराना जी। यह प्यासों की प्रेम सभा है… यहाँ न […]