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कहानी

ज्ञानदान/यशपाल

महर्षि दीर्घलोम प्रकृति से ही विरक्त थे। गृहस्थ आश्रम में वे केवल थोड़े ही समय के लिए रह पाये थे। उस समय ऋषि पत्नी ने एक कन्यारत्न प्रसव किया था । महर्षि भ्रम और मोह के बन्धनों को ज्ञान की अग्नि में भस्म कर, वैराग्य साधना द्वारा मुक्ति पाने के लिए नर्मदा तीर पर एक […]

आदमी का बच्चा/यशपाल

दो पहर तक डौली कान्वेंट (अंग्रेज़ी स्कूल) में रहती है। इसके बाद उसका समय प्रायः पाया ‘बिंदी’ के साथ कटता है। मामा दोपहर में लंच के लिए साहब की प्रतीक्षा करती है। साहब जल्दी में रहते हैं। ठीक एक बजकर सात मिनट पर आये, गुसलखाने में हाथ-मुंह धोया, इतने में मेज पर खाना आ जाता […]

कुत्ते की पूँछ/यशपाल

श्रीमती जी कई दिन से कह रही थीं- “उलटी बयार” फ़िल्म का बहुत चर्चा है, देख लेते तो अच्छा था। देख आने में ऐतराज़ न था परन्तु सिनेमा शुरू होने के समय अर्थात साढ़े छः बजे तक तो दफ़्तर के काम से ही छुट्टी नहीं मिल पाती। दूसरे शो में जाने का मतलब है- बहुत […]

मक्रील/यशपाल

गर्मी का मौसम था। मक्रील की सुहावनी पहाड़ी। आबोहवा में छुट्टी के दिन बिताने के लिए आई सम्पूर्ण भद्र जनता खिंचकर मोटरों के अड्डे पर, जहाँ पंजाब से आनेवाली सड़क की गाड़ियाँ ठहरती हैं – एकत्र हो रही थी। सूर्य पश्चिम की ओर देवदारों से छाई पहाड़ी की चोटी के पीछे सरक गया था। सूर्य […]

पिरामिण की हँसी/धर्मवीर भारती

वह कला के प्रति जीवन का पहला विद्रोह था। मिस्र के राजदूत ने घूम-घूमकर देश- देश में घोषणा की – “मिस्र की राजकुमारी कला को कृत्रिम और नश्वर समझती है । उसके मत में जीवन की यथार्थ बाह्य रूपरेखा कला से अधिक महत्वपूर्ण है। उसका विश्वास है कि कल्पना के सुकुमार उपासक, कलाकार जीवन का […]

कवि और जिन्दगी/धर्मवीर भारती

“गाओ कवि !” अनुरोध भरे स्वर में राजा बोला – “ गाओ, तुम्हारा पहला ही स्वर जैसे हर लेता है जीवन की सीमाएँ, पहुँचा देता है चाँदनी के लोक में, जहाँ कल्पना फूलों से शृंगार कर अतिथियों का स्वागत करती है। मैं भूल जाना चाहता हूँ यह संघर्ष, क्षण भर को मुझे खो जाने दो […]

कलंकित उपासना/धर्मवीर भारती

मनुष्य ईश्वर से पूर्णता का वरदान माँगने गया । ईश्वर अपने कुटिल ओठ दबाकर मुसकराया और बोला- “मेरी उपासना करो, मैं तुम्हें पूर्णता का वरदान दूँगा।” मनुष्य ने असीम श्रद्धा से पुलकित होकर भगवान के चरणों पर अपना रजत मस्तक रख दिया और देर तक उपासना करता रहा। थोड़ी देर बाद मनुष्य ने सर उठाया […]

अमृत की मृत्यु/धर्मवीर भारती

सामने रखे हुए अग्निपात्र से सहसा एक हलके नीले रंग की लपट उठी और बुझ गयी । दूसरी लपट उठी और बुझ गयी। उसके बाद ही दहकते हुए अंगारे चिटखने लगे और उनमें से बड़ी-बड़ी चिनगारियाँ निकलकर कक्ष में उड़ने लगीं। अग्निपात्र के सामने बैठा था एक भिक्षु-काषाय वस्त्र, चौड़ा भाल, लम्बी और गठी हुई […]

कलाः एक मृत्यु चिह्न/धर्मवीर भारती

“मैं विवश हूँ राजकुमारी ! मैं व्यक्तियों की प्रतिमा का अंकन नहीं करता।” “व्यक्तियों की प्रतिमा का अंकन ! मैं व्यक्ति मात्र नहीं हूँ कलाकार, मैं सुन्दरी हूँ और सुन्दरी केवल व्यक्ति नहीं, व्यक्तित्व होती है। काली घटाओं के रेशों से बुनी हुई मेरे नयनों की कजरारी अज्ञानता, पुरवैया के झकोरों से काँपते हुए मृणाल […]

आधार और प्रेरणा/धर्मवीर भारती

सुगन्धित धूम्र की रेखाएँ शून्य पट पर लहराकर अनन्त में मिलने लगीं। शमी की झूलती हुई कोमल शाखाओं में गूंज उठा ऋचागान। बालक के स्वर में स्वर मिलाकर बालिका भी ऋचाएँ गाने लगी। उसका स्वर इतना मीठा था कि डाल पर बैठी कोयल जाकर चुप हो गयी । हरिण शावक तृण चरना भूलकर यज्ञमण्डप में […]

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