ऐ री सखी मोरे पिया घर आए/कविता/अमीर खुसरो
ऐ री सखी मोरे पिया घर आए भाग लगे इस आँगन को बल-बल जाऊँ मैं अपने पिया के, चरन लगायो निर्धन को। मैं तो खड़ी थी आस लगाए, मेंहदी कजरा माँग सजाए। देख सूरतिया अपने पिया की, हार गई मैं तन मन को। जिसका पिया संग बीते सावन, उस दुल्हन की रैन सुहागन। जिस सावन […]