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ब्लॉग

तूफ़ानों ने कभी मात नहीं खायी/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

हवा का रुख बदलने पर बहुत नाचे, बहुत उछले जिनके शामियाने डोल चुके थे उन्होंने ऐलान कर दिया कि पेड़ अब शान्त हो गये हैं कि अब तूफ़ानों का दम टूट चुका है –   जैसे कि जानते न हों ऐलानों का तूफ़ानों पर कोई असर नहीं होता जैसे कि जानते न हों तूफ़ानों की […]

बेदख़ली के लिए विनय-पत्र/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

(इन्दिरा गाँधी की मृत्यु तथा इसके पश्चात सिखों के कत्ले-आम पर एक प्रतिक्रिया)   मैंने उम्र भर उसके खि़ला़फ़ सोचा और लिखा है अगर उसके शोक में सारा ही देश शामिल है तो इस देश में से मेरा नाम काट दो   मैं ख़ूब जानता हूँ नीले सागरों तक फैले हुए इस खेतों, खदानों और […]

भारत/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

भारत – मेरे आदर का सबसे महान शब्द जहाँ कहीं भी प्रयुक्त किया जाये शेष सभी शब्द अर्थहीन हो जाते हैं। इस शब्द का अभिप्राय खेतों के उन बेटों से है जो आज भी पेड़ों की परछाइयों से वक़्त मापते हैं। उनकी पेट के बिना, कोई समस्या नहीं और भूख लगने पर वे अपने अंग […]

सच/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

तुम्हारे मानने या न मानने से सच को कोई फ़र्क नहीं पड़ता। इन दुखते अंगों पर सच ने एक उम्र भोगी है। और हर सच उम्र भोगने के बाद, युग में बदल जाता है, और यह युग अब खेतों और मिलों में ही नहीं, फ़ौजों की कतारों में विचर रहा है। कल जब यह युग […]

दो और दो तीन/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

मैं प्रमाणित कर सकता हूँ – कि दो और दो तीन होते हैं। वर्तमान मिथिहास होता है। मनुष्य की शक्ल चमचे जैसी होती है। तुम जानते हो – कचहरियों, बस-अड्डों और पार्कों में सौ-सौ के नोट घूमते फिरते हैं। डायरियाँ लिखते, तस्वीरें खींचते और रिपोर्टें भरते हैं। ‘कानून रक्षा केन्द्र’ में बेटे को माँ पर […]

अपनी सुरक्षा से/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

यदि देश की सुरक्षा यही होती है कि बिना ज़मीर होना ज़िन्दगी के लिए शर्त बन जाये आँख की पुतली में ‘हाँ’ के सिवाय कोई भी शब्द अश्लील हो और मन बदकार पलों के सामने दण्डवत झुका रहे तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है   हम तो देश को समझे थे घर-जैसी पवित्र […]

सबसे ख़तरनाक/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

श्रम की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती ग़द्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती   बैठे-सोए पकड़े जाना – बुरा तो है सहमी-सी चुप में जकड़े जाना बुरा तो है पर सबसे ख़तरनाक नहीं होता   कपट के शोर में सही होते हुए भी दब जाना बुरा तो […]

मेरे महबूब के घर रंग है री/अमीर खुसरो

आज रंग है ऐ माँ रंग है री, मेरे महबूब के घर रंग है री। अरे अल्लाह तू है हर, मेरे महबूब के घर रंग है री। मोहे पीर पायो निजामुद्दीन औलिया, निजामुद्दीन औलिया-अलाउद्दीन औलिया। अलाउद्दीन औलिया, फरीदुद्दीन औलिया, फरीदुद्दीन औलिया, कुताबुद्दीन औलिया। कुताबुद्दीन औलिया मोइनुद्दीन औलिया, मुइनुद्दीन औलिया मुहैय्योद्दीन औलिया। आ मुहैय्योदीन औलिया, मुहैय्योदीन […]

चल खुसरो घर आपने/अमीर खुसरो

खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग। तन मेरो मन पियो को, दोउ भए एक रंग।। खुसरो दरिया प्रेम का, उल्टी वा की धार। जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार।। खीर पकायी जतन से, चरखा दिया जला। आया कुत्ता खा गया, तू बैठी ढोल बजा।। गोरी सोवे सेज पर, मुख पर […]

दुसुख़ने/अमीर खुसरो

दोसुख़ने में दो कथनों या उक्तियों का एक ही उत्तर होता है। इसका मूल आधार भी शब्द के दो-दो अर्थ हैं: अनार क्यों न चखा ? वज़ीर क्यों न रखा ? (उत्तर=दाना न था (अनार का दाना और दाना=बुद्धिमान) गोश्त क्यों न खाया ? डोम क्यों न गाया ? (उत्तर=गला न था) मांस कच्चा था, […]