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ब्लॉग

बफ़ा/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

बरसों तड़पकर तुम्हारे लिए मैं भूल गया हूँ कब से, अपनी आवाज़ की पहचान भाषा जो मैंने सीखी थी, मनुष्य जैसा लगने के लिए मैं उसके सारे अक्षर जोड़कर भी मुश्किल से तुम्हारा नाम ही बन सका मेरे लिए वर्ण अपनी ध्वनि खो बैठे हैं बहुत देर से मैं अब लिखता नहीं- तुम्हारे धूपिया अंगों […]

तुम्हारे बग़ैर मैं होता ही नहीं /कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

तुम्हारे बग़ैर मैं बहुत खचाखच रहता हूँ यह दुनिया सारी धक्कम-पेल सहित बेघर पाश की दहलीजें लाँघ कर आती-जाती है तुम्हारे बग़ैर मैं पूरे का पूरा तूफ़ान होता हूँ ज्वार-भाटा और भूकम्प होता हूँ तुम्हारे बग़ैर मुझे रोज़ मिलने आते हैं आईंस्टाइन और लेनिन मेरे साथ बहुत बातें करते हैं जिनमें तुम्हारा बिलकुल ही ज़िक्र […]

तुम्हारे रुक-रुक कर जाते पावों की सौगन्ध बापू/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

तुम्हारे रुक-रुक कर जाते पाँवों की सौगन्ध बापू तुम्हें खाने को आते रातों के जाड़ों का हिसाब मैं लेकर दूँगा तुम मेरी फ़ीस की चिंता न करना मैं अब कौटिल्य से शास्त्र लिखने के लिए विद्यालय नहीं जाया करूँगा मैं अब मार्शल और स्मिथ से बहिन बिंदरों की शादी की चिंता की तरह बढ़ती क़ीमतों […]

द्रोणाचार्य के नाम/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

मेरे गुरुदेव! उसी वक़्त यदि आप एक भील बच्चा समझ मेरा अंगूठा काट देते तो कहानी दूसरी थी………….   लेकिन एन।सी।सी। में बंदूक उठाने का नुक्ता तो आपने खुद बताया था कि अपने देश पर जब कोई मुसीबत आन पड़े दुश्मन को बना कर टार्गेट कैसे घोड़ा दबा देना है ………   अब जब देश […]

23 मार्च/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

उसकी शहादत के बाद बाक़ी लोग किसी दृश्य की तरह बचे ताज़ा मुंदी पलकें देश में सिमटती जा रही झाँकी की देश सारा बच रहा बाक़ी   उसके चले जाने के बाद उसकी शहादत के बाद अपने भीतर खुलती खिडकी में लोगों की आवाज़ें जम गयीं   उसकी शहादत के बाद देश की सबसे बड़ी […]

मैं पूछता हूँ/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से क्या वक़्त इसी का नाम है कि घटनाए कुचलती हुई चली जाए मस्त हाथी की तरह एक समूचे मनुष्य की चेतना को? कि हर सवाल केवल परिश्रम करते देह की गलती ही हो   क्यों सुना दिया जाता है हर बार पुराना लतीफा क्यों कहा जाता […]

मैं अब विदा लेता हूं/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

मैं अब विदा लेता हूं मेरी दोस्त, मैं अब विदा लेता हूं मैंने एक कविता लिखनी चाही थी सारी उम्र जिसे तुम पढ़ती रह सकतीं   उस कविता में महकते हुए धनिए का जिक्र होना था ईख की सरसराहट का जिक्र होना था उस कविता में वृक्षों से टपकती ओस और बाल्टी में दुहे दूध […]

कातिल/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

यह भी सिद्ध हो चुका है कि इंसानी शक्ल सिर्फ चमचे-जैसी ही नहीं होती बल्कि दोनों तलवारें पकड़े लाल आंखोंवाली कुछ मूर्तियां भी मोम की होती हैं जिन्हें हल्का-सा सेंक देकर भी कोई जैसे सांचे में चाहे ढाल सकता है   लेकिन गद्दारी की सजा तो सिर्फ एक ही होती है   मैं रोने वाला […]

हम लड़ेगे साथी/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

हम लड़ेंगे साथी हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए हम लड़ेंगे साथी, ग़ुलाम इच्छाओं के लिए   हम चुनेंगे साथी, ज़िन्दगी के टुकड़े हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर हल अब भी चलता हैं चीख़ती धरती पर यह काम हमारा नहीं बनता है, प्रश्न नाचता है प्रश्न के कन्धों पर चढ़कर हम […]

शहीद भगत सिंह/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

पहला चिंतक था पंजाब का सामाजिक संरचना पर जिसने वैज्ञानिक नज़रिये से विचार किया था   पहला बौद्धि‍क जिसने सामाजिक विषमताओं की, पीड़ा की जड़ों तक पहचान की थी   पहला देशभक्‍त जिसके मन में समाज सुधार का ए‍क निश्चित दृष्टिकोण था   पहला महान पंजाबी था वह जिसने भावनाओं व बुद्धि के सामंजस्‍य के […]