बफ़ा/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’
बरसों तड़पकर तुम्हारे लिए मैं भूल गया हूँ कब से, अपनी आवाज़ की पहचान भाषा जो मैंने सीखी थी, मनुष्य जैसा लगने के लिए मैं उसके सारे अक्षर जोड़कर भी मुश्किल से तुम्हारा नाम ही बन सका मेरे लिए वर्ण अपनी ध्वनि खो बैठे हैं बहुत देर से मैं अब लिखता नहीं- तुम्हारे धूपिया अंगों […]