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ब्लॉग

शोखियों में घोला जाये/गीत/गोपालदास नीरज

शोखियों में घोला जाये, फूलों का शबाब उसमें फिर मिलायी जाये, थोड़ी सी शराब होगा यूँ नशा जो तैयार हाँ… होगा यूँ नशा जो तैयार, वो प्यार है शोखियों में घोला जाये, फूलों का शबाब उसमें फिर मिलायी जाये, थोड़ी सी शराब, होगा यूँ नशा जो तैयार, वो प्यार है शोखियों में घोला जाये, फूलों […]

ओ प्यासे/गीत/गोपालदास नीरज

हर घट से अपनी प्यास बुझा मत ओ प्यासे! प्याला बदले तो मधु ही विष बन जाता है! हैं तरह-तरह के फूल धूल की बगिया में लेकिन सब ही आते पूजा के काम नहीं, कुछ में शोख़ी है, कुछ में केवल रूप रंग कुछ हँसते सुबह मगर मुस्काते शाम नहीं, दुनिया है एक नुमायश सीरत–सूरत […]

हम सब खिलौने हैं/गीत/गोपालदास नीरज

हम सब खिलौने हैं! ढीठ काल-बालक के हाथों में फूलों के बेहिसाब दौने हैं! हम सब खिलौने हैं! जन्मों के निर्दयी कुम्हार ने साँसों के चाकों पर हमको चढ़ाया है, तरह-तरह माटी ने रूंदा है जब तब यह अनूप रूप हमको मिल पाया है, सब को हम मनहर हैं, ऊपर से बहुत-बहुत सुन्दर हैं, लेकिन […]

स्वप्न झरे फूल से/गीत/गोपालदास नीरज

स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से, लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से, और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे कारवां गुज़र गया, ग़ुबार देखते रहे! नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई, पाँव जब तलक उठें कि राह रथ निकल गई, पात-पात झर गए कि शाख-शाख जल गई, फाँस […]

युद्ध और शांति/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

हम जिन्होंने युद्ध नहीं किया तुम्हारे शरीफ़ बेटे नहीं हैं ज़िंदगी! वैसे हम हमेशा शरीफ़ बनना चाहते रहे हमने दो रोटियों और ज़रा-सी रज़ाई के एवज़ में युद्ध के आकार को सिकोड़ना चाहा हम बिना शान के फंदों में शांति-सा कुछ बुनते रहे हम बर्छी की तरह हड्डियों में चुभे सालों को उम्र कहते रहे […]

उसके नाम/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

मेरी महबूब, तुम्हें भी गिला होगा मुहब्बत पर मेरी ख़ातिर तुम्हारे बेक़ाबू चावों का क्या हुआ तुमने इच्छाओं को सुई से जो उकेरी थी रूमालों पर उन धूपों को क्या बना, उन छायाओं का क्या हुआ   कवि होकर कैसे बिन पढ़े ही छोड़ जाता हूँ तेरे नयनों में लिखी हुई इक़रार की कविता तुम्हारे […]

हाथ/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

मैं अपने ज़िस्म को हाथों से सँभाल सकता हूँ मेरे हाथ जब महबूब का हाथ माँगते हैं पकड़ने को तो मैं चाँद भी हाथ में पकड़ना चाहता हूँ   मेरे हाथों को लेकिन सींखचों का स्पर्श बिना शिकवा मुबारक हे साथ ही कोठरी के इस अँधेरे में मेरे हाथ, हाथ नहीं होते सिर्फ़ थप्पड़ होते […]

हमारे समयों में/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

यह सब कुछ हमारे ही समयों में होना था कि समय ने रुक जाना था थके हुए युद्ध की तरह और कच्ची दीवारों पर लटकते कैलेंडरों ने प्रधानमंत्री की फ़ोटो बनकर रह जाना था   धूप से तिड़की हुई दीवारों के परखचों और धुएँ को तरसते चूल्हों ने हमारे ही समयों का गीत बनना था […]

मुझे चाहिए कुछ बोल/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

मुझे चाहिए कुछ बोल जिनका एक गीत बन सके……   छीन लो मुझसे ये भीड़ की टें टें जला दो मुझे मेरी कविता की धूनी पर मेरी खोपड़ी पर बेशक खनकाएं शासन का काला डंडा लेकिन मुझे दे दो कुछ बोल जिनका गीत बन सके……   मुझे नहीं चाहिए अमीन सयानी के डायलॉग संभाले आनंद […]

लोहा/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

आप लोहे की कार का आनन्द लेते हो मेरे पास लोहे की बन्दूक़ है   मैंने लोहा खाया है आप लोहे की बात करते हो लोहा जब पिघलता है तो भाप नहीं निकलती जब कुठाली उठाने वालों के दिल से भाप निकलती है तो लोहा पिघल जाता है पिघले हुए लोहे को किसी भी आकार […]