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मेले में बच्चे/कविता/पल्लवी पाण्डेय

मेले में घूमते हुए
मैंने देखा
दुनिया के सबसे अमीर लोगों का चेहरा
कुछ ने पकड़ी थी
अपने बच्चों की उंगलियां
कुछ कंधों पर सवार थे
दुनिया के भाग्यशाली बच्चे
समय और अत्यधिक श्रम बेवक्त बूढ़े लगते कुछ चेहरों के साथ चल रहे थे बढ़ते हुए बच्चे
मेले में बिकती हर चीज को खरीदने ,
सारे झूले झूलने को उत्सुक बच्चों के माता –पिता ने
जुटाया है इतना धन
वे खरीद लेंगे
उन तमाम चीजों में से कोई एक खिलौना
खिला देंगें बच्चों को गोलगप्पे ,दिला देंगे गुड़िया के बाल ,
घूमते हुए मेले में
देखा है मैंने
खाने की चीजों से दूर खड़े पिता को
अपना मन मारकर
मन ही मन लगाते हैं घर तक लौटने का हिसाब
वे लौटते है खाली जेब से
नन्हें बच्चों के लिए एक चौड़ी मुस्कान खरीदकर
अपने बच्चों के लिए सबसे अमीर इंसान बनकर

लेखक

  • पल्लवी पाण्डेय सहायक आचार्य बीडीएम गर्ल्स डिग्री कॉलेज शिकोहाबाद फिरोजाबाद परारंभिक शिक्षा – वाराणसी उच्च शिक्षा : बी ए , एम ए , पीएचडी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) एसोसिएट रिसोर्स पर्सन अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन पौड़ी गढ़वाल प्रकाशित रचनाएं –सृजन की ज़मीन (काव्य संग्रह)

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