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धूप लिखेंगे-छाँह लिखेंगे/नवगीत/रवीन्द्र उपाध्याय

धूप लिखेंगे-छाँह लिखेंगे
मंजिल वाली राह लिखेंगे
खुशियों के कोलाहल में जो
दबी-दबी है आह, लिखेंगे।

बादल काले – उजला पानी
निशा-गर्भ में उषा सुहानी
रंग-गन्ध की कथा चल रही
श्रोता विवश शूल अभिमानी

सतत् सत्य-सन्धानी हैं हम
कैसे हम अफ़वाह लिखेंगे!

जलता एक दीप काफ़ी है
चाहे जितना तम हो गहरा
कब रुकते हैं अभियानी पग?
विघ्न भले हो दुहरा-तिहरा

होंगे और लहर गिनते जो
हम दरिया की थाह लिखेंगे।

बे-मक़सद जीना क्या जीना!
बिना पाल जिस तरह सफ़ीना
हर हताश को हास बाँटना
पड़े न क्यों खुद आँसू पीना

मायूसी के मस्तक पर भी
पल-पल का उत्साह लिखेंगे।

हमें न कोठी, कार चाहिए
श्रम का पर सत्कार चाहिए
फूलों की दो-चार क्यारियाँ
पूरी नहीं बहार चाहिए

हम विरुद्ध हर दमन-दंभ के
होकर बे-परवाह लिखेंगे।

लेखक

  • रवीन्द्र उपाध्याय जन्म- 01.06.1953 विश्वविद्यालय प्राचार्य (से.नि.) विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग, बी. आर. ए. बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर। शिक्षा- एम. ए. (हिन्दी), पी-एच. डी. प्रकाशित कृतियाँ : बीज हूँ मैं (कविता संग्रह), धूप लिखेंगे-छाँह लिखेंगे (गीत-ग़ज़ल संग्रह), देखा है उन्हें (कविता संग्रह) संपर्क : दाऊदपुर कोठी, पत्रालय- एम. आई. टी., मुजफ्फरपुर - 842003 (बिहार) मोबाइल नं.- 8102139125

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