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मजा कुछ और है/नवगीत/रवीन्द्र उपाध्याय

फूंक कर चलने में
खतरे का नहीं है डर, मगर
तेज चलने का मज़ा कुछ और है।

ज़िन्दगी प्रतियोगिता है
साहसी ही जीतता है
पवन-गति से बढ़ चला जो
पुतलियों में लक्ष्य ले
उसको ही होना यहाँ सिरमौर है।

हरी लकड़ी-सा धुआँना
जल न सकना-बुझ न पाना
कहीं बेहतर चार पल ही
धधक कर जो जल गया
पा गया इतिहास में वह ठौर है।

खुश्बुओं में फूल बिम्बित
बारिशों में मेघ संचित
शेष कुछ रहता नहीं-
धन-धाम, यौवन, कनक-तन
सिर्फ सुधियों का महकता बौर है।

लेखक

  • रवीन्द्र उपाध्याय जन्म- 01.06.1953 विश्वविद्यालय प्राचार्य (से.नि.) विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग, बी. आर. ए. बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर। शिक्षा- एम. ए. (हिन्दी), पी-एच. डी. प्रकाशित कृतियाँ : बीज हूँ मैं (कविता संग्रह), धूप लिखेंगे-छाँह लिखेंगे (गीत-ग़ज़ल संग्रह), देखा है उन्हें (कविता संग्रह) संपर्क : दाऊदपुर कोठी, पत्रालय- एम. आई. टी., मुजफ्फरपुर - 842003 (बिहार) मोबाइल नं.- 8102139125

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