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कुण्डलियां/हास्य/ दिनेश चन्द्र गुप्ता ‘रविकर’

विनती सम मानव हँसी, प्रभु करते स्वीकार।
हँसा सके यदि अन्य को, कर दे बेड़ापार।
कर दे बेड़ापार, कहें प्रभु हँसो हँसाओ।
रहे बुढ़ापा दूर, निरोगी काया पाओ।
हँसी बढ़ाये उम्र, बढ़े स्वासों की गिनती।
रविकर निर्मल हास्य, प्रार्थना पूजा विनती।।
रविकर यदि राशन दिया, दे वह भूख मिटाय।
यदि मकान देते बना, घर बनाय वह भाय।
घर बनाय वह भाय, भाय वह चौबिस घंटा।
किन्तु करो यदि रार, करेगी वह भी टंटा।
लल्लो चप्पो ढेर, करे हैं मर्द अधिकतर।
हे बच्चों की माय, दंडवत करता रविकर।
भारी भरकम बुलट पे, गर्ल फ्रेंड बैठाय।
किया लांग-ड्राइव मगर, भारी शोर सताय।
भारी शोर सताय, बेच एक्टिवा ख़रीदा।
पत्नी बनकर प्रिया, खोल दी लेकिन दीदा।
दिया एक्टिवा बेच, उतरती प्यार खुमारी।
लाया पुनः खरीद, बुलट उससे भी भारी।
लेकर बैठे विष्णु शिव, क्रमश: चक्र त्रिशूल।
धनुष धारते राम जी, जो पति के अनूकूल ।
जो पति के अनुकूल, पत्नियों संग विराजे।
श्याम सलोने कृष्ण, हाथ क्यों बंशी साजे।
पत्नी करती प्रश्न, कहे डर डरकर रविकर।
प्रिया संग हैं कृष्ण, चैन की बंशी लेकर।।
अभ्यागत गतिमान यदि, दुर्गति से बच जाय।
दुख झेले वह अन्यथा, पिये अश्रु गम खाय।
पिये अश्रु गम खाय, अतिथि देवो भव माना।
लेकिन दो दिन बाद, मारती दुनिया ताना।
कह रविकर कविराय, करा लो बढ़िया स्वागत।
शीघ्र ठिकाना छोड़, बढ़ो आगे अभ्यागत।।
सोफा पे पहुना पड़ा, लंठ लवासी ढीठ ।
अतिथि-यज्ञ से दग्ध मन, फिर भी बोलूं मीठ ।
फिर भी बोलूं मीठ, पीठ मैं नहीं दिखाऊं ।
रोटी शरबत माछ, रोज पकवान खिलाऊं ।
रगड़ा चन्दन मुफ्त, चुने खुद से ही तोफा ।
हिला गया कुल-बजट, तोड़ के मेरा सोफा ।
बेलन ताने देख के, तनी-मनी घबराय |
लेकिन ताने मार के, जियरा रही जलाय |
जियरा रही जलाय, खरी-खोटी खर-मंडल |
रविकर मौका पाय, दिखाती अबला छल बल |
मनमाना व्यवहार, नहीं ब्रह्मा भी जाने |
जब ताने में धार, व्यर्थ क्यों बेलन ताने ||
बोदा लड़का घूमता, छुटका बड़ा सयान।
गाली खाए नित्य यह, वह बनता विद्वान ।
वह बनता विद्वान, विलायत गया कमाने।
व्याही गोरी मेम, और भी कई बहाने |
अब तो रविकर वृद्ध, करे नित सेवा बड़का ।
दे देना प्रभु एक, उसे भी बोदा लड़का ||
तुम गुरूर में रह रही, सजा सजाया फ्लैट।
रहता मैं औकात में, बिछा फर्श पर मैट।
बिछा फर्श पर मैट, बसा था तेरे दिल में।
रविकर आठों याम, जमाया रँग महफिल में।
रहो होश में बोल, निकाली तुम सुरूर में।
इधर होश औकात, उधर हो तुम गुरूर में।

लेखक

  • दिनेश चन्द्र गुप्ता 'रविकर' स्थाई पता : लल्लूराम मार्केट मवई चौराहा पोस्ट : मांजनपुर जिला : अयोध्या धाम उत्तर प्रदेश 225408 माता-पिता : स्व विद्योत्मा , स्व लल्लूराम गुप्ता जन्म: 15-08-1960 शिक्षा : आई आई टी (आई एस एम) धनबाद से एडवांस डिप्लोमा इन माइनिंग इंस्ट्रूमेंटेशन एंड टेलीकम्युनिकेशन आई आई टी (आई एस एम) धनबाद से अगस्त 2020 में अवकाशप्राप्त । दिसम्बर 2021 से आई आई आई टी रांची, झारखण्ड में टेक्निकल सुपरिटेंडेंट के रूप में पुनर्नियोजन। प्रकाशित पुस्तकें : (1) प्रभु राम की सगी बहन, "भगवती शांता" प्रबंध काव्य (2) धरती आबा प्रबंध काव्य (3) हिन्दु हृदय सम्राट, महाराजा सुहेलदेव (प्रेस में) प्रबंध काव्य एवं लगभग दो दर्जन साझा - संस्करण सम्पादन: काव्य-मयूरी साझा काव्य-संग्रह : शब्दांकुर प्रकाशन दिल्ली उल्लेखनीय योगदान: कर्नाटक राज्य अक्कमहादेवी महिला विश्वविद्यालय, विजयपुर के बी. एस् सी. तृतीय सेमेस्टर (अनिवार्य) पाठ्यक्रम में मेरी कविता "आरोग्य सूत्र" पाठ के रूप में स्वीकृत। dcgpth@gmail.com 9793734837

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