ट्रेक्टर ट्रॉली के पीछे पीछे
सीटी बजाती हुई आती थी गुलाबो
घर – घर से
बजबजाती हुई दुर्गन्ध युक्त
सड़ा हुआ कचरा ही नहीं
उठाती थी गुलाबो
बल्कि कई बिमारियों से
निजात दिलाती थी गुलाबो,
ड्राइवर की झिड़की के बावज़ूद
गेट पर कचरे की बाल्टी के इंतजार में
खड़ी रहती थी गुलाबो,
गंदी बस्ती में रहने वाली गुलाबो
अनपढ़ होने के बावजूद
सफाई का महत्व
अच्छी तरह से समझती थी,
शराबी पति के गुजर जाने के बाद
तीन बच्चों की माँ गुलाबो
दिन रात इस उम्मीद में
खटती रहती थी
कि उनके बच्चे भी एकदिन
पढ़-लिख कर
शुक्ला साहब जैसे अफसर बने
जो उनके ठेकेदार के भी बड़े साहब है,
कई दिन गुजर गये
विचलित हो उठा कवि हृदय
मन में प्रश्न जागा
आजकल सफाई कर्मियों के साथ क्यों नहीं दिखाई दे रही है गुलाबो?
क्या गुलाबो काम छोड़ दिया है?
क्या उसे काम से निकाल दिया है?
पूछने पर पता चला
गुलाबो किसी
अज्ञात बीमारी से ग्रसित होकर
सरकारी अस्पताल में दम तोड़ चुकी है
सफाई कर्मी गुलाबो चली गई
हमेशा के लिए चली गई!
बहुत दूर चली गई!
जहाँ से कोई लौटकर नहीं आता!
पर कई प्रश्न चिन्ह छोड़ गई गुलाबो
इस समाज के लिए
इस देश के लिए
और स्वच्छता पर
राजनीति करने वालों के लिए
साथ ही साथ
उन घरों के सदस्यों के लिए
जहाँ से गुलाबो कचरे के साथ साथ
बहुत सारी बिमारियों को ढोकर
उनसे दूर ले जाती थी।