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समर्पण/डॉ पद्मावती

“ओह! यह क्या? मैं  पारिजात समर्पित कर रही हूँ पर आपके  शरीर पर ये तुलसी के पत्ते कहाँ से आ रहे हैं ? कहीं ये चाल रुक्मिणी की तो नहीं माधव”?

कन्हैया के अधरों की मुस्कान देख सत्याभामा झुंझला उठी । ।
“ न प्रिये न । तुम हमेशा रुक्मिणी को ही दोषी मानती हो । हाँ .माना कि एक बार उसने तुम्हारे अतुल ऐश्वर्य को धता बताकर मुझे एक पत्ते से तोल लिया था पर तुलसी से द्वेष कहाँ तक उचित है देवी ? जरा पार्थिव लोक पर भी एक दृष्टि डालो” ।

त्रिभंगी मुद्रा पर वक्र स्मित । सत्याभामा के भौंहों की प्रत्यंचा तन गई । नथुने फूल गए और तीर तरकश से निकलने वाला था कि दृष्टि नीचे मृत्यु लोक की ओर गई ।
संध्या समय वहाँ उपवन में बैठी मीरा आज अपना श्रृंगार कर रही थी । वृंदा के कोमल हरे नरम पत्ते तोड़ती उलट पुलट कर उन्हें देखती ,स्नेह से दुलारती और माला में पिरो पहन लेती अपने शरीर पर । कर्ण फूल कानों में ,एक माला गले में, एक कटि पर और एक पाँव में पायल बनाकर । उसकी पूरी काया तुलसी के पत्तों से ढंक चुकी  थी । कभी उन्हें सहलाती ,कभी पुचकारती …और तो और उनसे बतिया भी रही थी ।

उसे देख सत्यभामा क्षण भर के लिए सन्न रह गई। पर अगले ही पल संभलकर बोली,
“ ये मूढ़ा तुलसी अपने ऊपर क्यों धारण कर रही है मुकुंद ? इसे क्या कहेंगे? मतिभ्रम ,बालपन या  विक्षिप्तता  की पराकाष्ठा? जो आप  को समर्पित करना चाहिए ,उससे स्वयं को अलंकृत किया जा रहा है । आश्चर्य ।…वो पर्ण आप पर सज रहें है? क्या रहस्य है भक्त वत्सल?

“सत्य वचन सत्या  । बताओ अभी तुमने क्या कहकर पुकारा ?”

“क्या …माधव?”

“न …न।कुछ और कहकर पुकारा था वल्ल्भे” ।

“ हाँ…’भक्त वत्सल’ ।वो तो मैं हमेशा कहती हूँ । इसमें नयी बात क्या?”

“ हाँ देवी । अब तक तुम कहती थी…आज उन शब्दों की सार्थकता भी तनिक जान लो । उस पगली की मनोदशा साधारण जन के लिए अज्ञेय है और इंद्रियातीत भी । पर तुम …तुम भी न जान सकी ? अब आश्चर्य करने की बारी मेरी हुई न देवी ? देखिए उसे …उस पगली को। उसने मुझे अपने से पृथक माना ही नहीं। वह मुझे अपनी हर साँस में हर अणु में अनुभूत कर रही है  । अब वह मीरा कहाँ रही… वह तो स्वयं कृष्ण हो गई है । सोचिए… मैं उसका विश्वास भला कैसे तोड़ सकता हूँ । क्या इतना सामर्थ्य है मुझमें ?जब साधक साध्य से पृथक न रहकर एकाकार हो जाए, तो लौकिक शब्दों में उसे क्या कहेंगे,,,, पागलपन ही न ? रहस्य  यह है देवी कि उस उन्मादी  ने  मुझे अपने वश में कर लिया है । और मैं …आज मैं हार गया..। दास को मूल्य चुकाना पड़ा – ‘आत्म समर्पण’ ।

विह्वल प्रभु के नयन मुंद गए ।

अवसर पा दो बूंदें  पलकों से ढुलकीं और इससे पहले सत्यभामा उन्हें  अपनी अंजुली में ले लेती, कपोलों से फिसलती वे प्रभु के पीतांबर पर गिर जंघा को भिगो गईं  ।

सत्यभामा को जिसकी आशंका थी हुआ वही  ।

भूलोक में ‘घनश्याम’ बरसे और मीरा आपादमस्तक अभिषिक्त हो गई ।

समाप्त

 

 

लेखक

  • डॉ पद्मावती. शैक्षिक योग्यताएँ = एम. ए, एम. फिल, पी.एच डी, स्लेट (हिंदी) जन्म स्थान = नई दिल्ली वैवाहिक स्थिति = विवाहित ई -मेल = padma.pandyaram@gmail.com संप्रति = * सह आचार्य, हिंदी विभाग, आसन मेमोरियल कॉलेज, जलदम पेट , चेन्नई, 600100 . तमिलनाडु . अध्यापन कार्य = गत 17 वर्षों से स्नातक महाविद्यालय में हिंदी भाषा • महाविद्यालयों और विश्व विद्यालयों में अतिथि व्याख्यान. • चेन्नई के कई स्वायत्त महाविद्यालयों के स्नातक परीक्षाओं में हिंदी के प्रश्न पत्रों का निर्माण तथा पांडिचेरी विश्वविद्यालय की वार्षिक परीक्षाओं में अध्यक्ष और परीक्षक की भूमिका का निर्वहण . साहित्यिक सेवाएं • चेन्नई की लब्ध प्रतिष्ठित स्वैच्छिक हिंदी संस्थान ‘ सत्याशीलता ज्ञानालय’ से जुड़कर कई साहित्यिक गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी , अनेक साहित्यकारों का साक्षात्कार, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्टियो का संचालन और संयोजन . • हिंदी साहित्य भारती तमिलनाडु इकाई की मीडिया प्रभारी . • राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्टियो में प्रतिभगिता और शोध पत्रों का प्रस्तुतीकरण. • ‘रचना उत्सव’ मासिक पत्रिका की दक्षिण भारत की मुख्य समन्वयक • ‘भारत दर्शन’ की संपादक (दक्षिण भारत साहित्य) प्रकाशन • विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्र -पत्रिकाओं में शोध आलेखों का प्रकाशन, • जन कृति,वीणा मासिक पत्रिका, समागम, साहित्य यात्रा जैसी लब्ध प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और साहित्य कुंज व पुरवाई कथा यू .के .जैसी सुप्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक पत्रिकाओं में नियमित लेखन कार्य , कहानी , व्यंग्य लेखन , स्मृति लेख , चिंतन, यात्रा संस्मरण, सांस्कृतिक और साहित्यिक आलेख,पुस्तक समीक्षा ,सिनेमा और साहित्य समीक्षा इत्यादि का प्रकाशन . सम्मान • हिंदी दिवस समारोह के उपलक्ष्य में आयोजित ‘सत्याशीलता ज्ञानालय’ के कार्यक्रम में ७/१२/२०१३ को चेन्नई के माननीय राज्यपाल श्री के. रोसय्या द्वारा शिक्षक सम्मान प्रदान किया गया . • ‘नव सृजन कला साहित्य एवं संस्कृति न्यास’, नई दिल्ली द्वारा ‘हिंदी साहित्य रत्न सम्मान” • ‘हिंदी अकादमी, मुंबई द्वारा’ ‘विशेष हिंदी प्रचारक सम्मान 2021’ • अंतर्राष्ट्रीय महिला मंच द्वारा ‘नारी गौरव सम्मान’ • भारत उत्थान न्यास द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर ‘ भगिनी निवेदिता सम्मान’

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