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विस्मृति/डॉ पद्मावती

दो शब्द;

प्रकृति की गोद में बसी जन जातियाँ । निष्कपट और साफ दिल ।  आज भी आधुनिकता से दूर नैसर्गिक जीवन जीती हुई। कष्टतर परिस्थितियों को झेलने पर मजबूर । उपेक्षित, अशिक्षित,  अपने संवैधानिक अधिकारों से अनभिज्ञ। इस आदिवासी  समुदाय की महिलाओं की स्थिति तो और भी बदतर । घर बाहर दोनों स्थलों पर दोहरा शोषण ।  अपनों  से ही ठगी और चुप रहने को विवश । ऐसी ही एक अशक्त नारी की बेबसी को शब्द देती कहानी …. आगे पढिए

विस्मृति

बात उस समय की है जब सीता भारद्वाज की  नियुक्ति हुई थी एक पहाडी  इलाके में और  उन्होंने किराए पर  यहाँ घर ले लिया था जो गाँव से कुछ दूरी पर अलग-थलग था ।  अनंतपुर जिले का एक आंतरिक गाँव  या  छोटा सा कस्बा । घर के बाहर नाम की तख्ती टाँगते हुए गर्व से सीना तन गया था जिस पर लिखा था ,‘सीता भारद्वाज ‘प्रबंधक, ग्रामीण बैंक, आंचलिक शाखा ’!

स्थान  बड़ा ही मनोरम ,रमणीय और शांत था ! एक छोर  पर्वतीय  घाटियों से घिरा हुआ था , तो दूसरी ओर  दूर तक  खेतों पर  हरियाली नजर आती  थी  । पास ही  कल-कल  बहती हुई   बडी सी नहर  थी जिसे पार करने के लिए  कभी कभी छोटी सी मोटर बोट शांति को भंग करती हुई घर्र घर्र  की आवाज निकालती  हुई चलती थी ।

एक रहस्यमयी चुप्पी को घेरे हुए था पूरा माहोल । उनका इन रमणीय नजारों से बेहद लगाव हो गया था ।  काम के उपरांत वे  हमेशा बरामदे में बैठी  पुरानी पत्रिकाओं के पन्ने उलटती रहती थी ।  यहाँ घरों में  हाथ बटाने के लिए  काम पर अधिकतर आदिवासी महिलाएं ही  आती थी । बाद में  पता चला कि पास के पहाडी इलाकों  में कई जन जातियाँ बसी हैं  लेकिन वहाँ सुविधाओं और  रोजी रोटी  के अभाव के कारण काम की तलाश में उन्होंने  धीरे धीरे गाँवों और कस्बों की ओर रुख कर लिया है  ।

सीता दीदी  के  घर में भी काम करने वाली कांता बाई ऐसी ही आदिवासी महिला थी जो बहुत ही ईमानदार और नेकदिल थी । विधवा, लाचार  और बेबस । दिन रात काम करके भी अपना पेट भरने में असमर्थ । गरीबी के अभिशाप से ग्रस्त । इसकी बेटी मल्ली  उसका पति सुखना  और उनके तीन बच्चे यहीं रहते थे।  सुखना  बेकार था । कभी भी जब कटाई बोवाई होती थी खेतों में तो जमींदार  का बुलावा आता और  काम मिल जाता था ।  । वरना  तो केवल घर बैठ कर मुफ्त की रोटियाँ तोड़ता था । हाँ ,कभी कभी जमींदार अपने बहुत व्यक्तिगत रहस्यमयी कामों के लिए इसे बुलवा भेजता था । जो केवल इसी के द्वारा संपन्न हो सकते थे । राम जाने क्या काम होते थे । मल्ली की कच्ची उम्र  तो नहीं जानती थी इन पेचीदगियों को ,लेकिन  हाँ , कान्ता बाई को अच्छी खबर थी कि उसका दामाद क्या गुल खिला रहा है ।  वह सीता दीदी के  पास आकर कभी कभी धीमे स्वरों में  पूरी रामकहानी सुनाती थी जिसकी ओर वे  कभी ध्यान नहीं देती थी ।

इसकी बेटी मल्ली  सचमुच रूप का खजाना  थी ।  कम उम्र में ब्याह , पच्चीस  तक पहुँचते तीन तीन बच्चों की माँ बन चुकी थी जिनकी आयु क्रमशः आठ, छः और तीन साल की थी ।  बच्चे नंग धडंग ,हमेशा मिट्टी कीचड से सने हुए ,गिल्ली डंडा खेलते ,गलियों  में शोर मचाते हुए फिरते थे। बडी मुश्किल से सीता ने  इन्हें स्कूल में भरती करवाया था और इसी  कारण कांताबाई और उसकी लड़की उनका बड़ा उपकार मानती थी ।आजकल स्कूल की यूनिफोर्म  और जूते पहन कर बच्चे ढंग से  स्कूल जा रहे थे ।

सुखना मालिक का बहुत वफादार था । मालिक की उसके प्रति दरियादिली का कारण मल्ली थी । वह उसके रूप का दीवाना था । उसके लिए बडी से बडी रकम सुखना को पहुँचा दी जाती थी और सुखना मालिक के उपकारों तले दबा रहता था । अपनी ब्याहता मल्ली को अपने मालिक के पास भेजने में उसे शर्म तो दूर गर्व का एहसास होता था । मल्ली ने आरंभ में बहुत विरोध किया था लेकिन सुखना के पाशविक बल के सामने उसने घुटने टेक दिए थे ।मना करने पर लातों और घूसों से मारता था  ।  और जब वह मार खा खाकर अधमरी हो जाती तो उसे मालिक के पास पहुँचा आता था । कांता बाई बहुत रोती थी , बहुत पैर पड़ती थी ।  बेटी की दुर्दशा उससे देखी नहीं जाती थी लेकिन मालिक का खौफ दिखाकर वह इस कुकृत्य को करने  में वह सफल हो जाता था । और उसे पैसों का मोह दिखाकर चुप करा देता था । मरने और मारने की धमकियाँ देकर उसने कांता बाई को भी अपने वश में रखा हुआ था । दोनों माँ बेटी उसके सामने विवश थी ।

*****

आज रात मल्ली चूल्हे के पास बैठी रोटियाँ बेल रही थी ।

सुखना  पास बैठा दांत निपोरता हुआ अर्थपूर्ण दृष्टि से उसे देख रहा था । मल्ली ने तिरछी निगाहों से उसका मन पढ़  तो लिया  था लेकिन अंजान ही बनी रही  ।  उसे अनदेखा कर  वह तेज तेज बेलन चलाने लगी । उसने  पास आकर बड़े प्यार से मल्ली का हाथ पकड़ा ,’सुन प्यारी, आज मालिक ने तुझे बहुत दिनों के बाद याद किया है । मेरी गुलाबो, तू जरा यह काम छोड़ । तेरी अम्मा कर लेगी । वैसे भी पूरा दिन वह खाली ही बैठी रहती है । तू तैयार हो जा । हम जल्दी निकल जाएंगे । मालिक का दिल आज तुझे देखने को तरस रहा है’।

‘देख, आज मेरी तबीयत सुस्त है । मैं न जा पाऊँगी” मल्ली ने हाथ छुड़ाने का प्रयत्न किया ।

‘अरे, कैसे नहीं जाएगी छिनाल ….मालिक ने सख्त कहा है तुझे लाने को । और तेरी तबीयत हमेशा मालिक को देखकर क्यों खराब हो जाती है, चल जल्दी कर वरना मार मार कर मुंह सुजा दूंगा’ ।

सुखना की दहाड़ सुन मल्ली डर गई।

‘आज रहने दे, मैं तेरे पांव पड़ती हूँ, फिर कभी….’ अभी  उसकी बात खत्म ही नहीं हुई थी कि सुखना का वजनी हाथ तेज गति से मल्ली के गाल पर पड़ा और उस का दिमाग झनझना उठा  । बेलन हाथ से छूट गया । तेज चपेट से उसका होंट फट गया , खून रिसने लगा ।

गुस्से से फिर आगे बड़ कर  सुखना ने उसके बाल पकड़े और उसे खींचता हुआ चिल्लाने लगा ,’नखरा करती है साली , चल यूँ ही चल, अब तो ..”। और  वह उसे उसी हालत में घसीटते  हुए बाहर ले आया ।

मालिक बरामदे में  ही बैठकर  बेसब्री से सुखना की  प्रतीक्षा कर रहे थे । डाक बंगले पहुँचते ही  उसने मल्ली को धक्का मार कर धम्म से नीचे जमीन पर  गिरा दिया । सुखना बड़ा ही नाटकबाज था । बड़ा ही धूर्त । जानता था मालिक को कैसे वश में किया जा सकता है । मल्ली की जवानी उनकी कमजोरी थी और सुखना की कमजोरी रोकड़ा । दोनों  को एक दूसरे की जरूरत थी । दोनो एक दूसरे बिना रह न सकते थे तो फिर डर किस बात का । मालिक तो उसकी मुठ्ठी में थे ।  होंठों पर खिसियायी सी मुस्कुराहट ला हाथ जोड़ दिए । धीरे से नजदीक आ ड़रते हुए बोला, ‘माफ करना सरकार । देर हुई ।  ये आजकल नखरा बहुत करने लगी है, मना कर लाने में देर हो गई’ ।

मालिक मल्ली को देख अपनी जगह से उठ खडे हुए । रोक न पाए अपने आप को । बड़े दिन से भूखे थे । खून तेजी से अंदर उबाल मारने लगा । सिरहन सी होने लगी । नसें कठोर हो रही थी ।  होश खो रहा था । मदमस्त हाथी की तरह आंखों में खुमारी आ गई लेकिन …सुखना… इस उल्लू के पट्ठे मूर्ख को क्या कहें ? कमीने ने उनकी अमानत को मिट्टी में गिरा दिया था ।

झट से  वे आगे बढे और उन्होंने   मल्ली को सहारा देकर  उठाया । उसकी कोमल कमर को हाथ से सहलाते हुए गुस्से से उनके नथुने फूल गए ।

गुर्राए, ‘अरे सुखना… तू बिल्कुल गधा है । क्या औरत से ऐसा व्यवहार करते है? अरे कोमलता से पेश आ । पगला कहीं का..’ ।

उन्होंने मल्ली को प्यार से उठाया । उसके कूल्हों पर हाथ फेरा और  ‘उठो मल्ली…. तेरा मर्द पगला गया है, देख…. तू अंदर जा .. चलकर नहा धो ले  और फिर कुछ खा भी लेना…. जा’ ।

‘तू सुखना, तू अभी जा, । उल्लू कहीं का । क्या ऐसा करता है कोई? देख नाजुक त्वचा कैसे लाल हो गई । आगे से कभी औरत  पर हाथ मत उठाना ,समझा , मेरा मन बहुत दुखता  है  रे पगले । समझा । भाग यहाँ से । गधा है तू , बिल्कुल गधा।‘

मालिक की ललचाई निगाहें उस ओर देख रही थी जहाँ से  मल्ली अंदर गई थी । वे आतुर हो रहे थे । बेसब्र । उन्होंने सुखना की ओर रुपयों की गड्डी उछाली । सुखना चमक गया । तन मन पुलकित हो गया । उसने मालिक को कृतज्ञता भरी निगाहों से देखा । हाथ जोड़ दिए ।  मालिक की डपट से वह सहम गया था । लेकिन अब हिम्मत आ गई ।  मनचाही मुराद पूरी हुई । महीने का इंतजाम हो गया । उसने रुपयों को माथे से लगाया और खिसियायी सी हंसी हंसता हुआ बिना विलंब किए तुरंत वहाँ से चलता बना ।

मल्ली चुपचाप अंदर चली आई । मालिक आज बहुत मनचले हो रहे थे । कई दिनों बाद मल्ली को चखा था । पूरी कसर निकाली जा रही थी ।  वे मस्त होकर उसका अंग-प्रत्यंग नाप रहे थे । भूखे शेर की तरह उस पर टूट पड़े थे । और मल्ली …मल्ली तो  चुपचाप…काठ की बनी जैसे चुपचाप सब सह रही थी । उनकी हर आज्ञा का बस चुपचाप पालन किए जा रही थी । उसकी की आंखों के आगे अंधेरा छा रहा था । आज मालिक का तेज सहने की उसमे शक्ति न थी । कई दिनों से पेट में भयंकर पीड़ा हो रही थी । मालिक के जोश ने तो आज खून निकाल दिया था । और वे थे कि उसे रोंदे जा रहे थे । एक… दो ….तीन बार… । उफ्फ ! मल्ली पीड़ा से कराह उठी ।

‘न मालिक बस कीजिए …बस कीजिए …’. उसकी चीख निकल गई । लेकिन मालिक ने न मानी । वे  तो सुख के अथाह सागर में गोते लगा रहे थे । मद बहने लगा । नदी बनकर ,समुद्र बनकर  …सैलाब बनकर … अपनी सीमा लांघ कर अंदर तक  भिगो गया मल्ली को । सुख की चरम सीमा ….मल्ली खून-खून हो गई । तूफान आया और  तबाही मचा दी थी उसने । उधेड़ दिया था उसने सब कुछ । और वह ऐसी उधड़ी कि  उसके तार-तार हो गए । पूरा शरीर पिस गया था । तब जाकर उस तूफान का आवेग तृप्त हुआ ….शांत हुआ

बाहर रात गहरा गई थी । घुप्प अंधेरा । सब थम गया था । पर्वत खामोश थे ।  कुछ क्षण उसे निहारते रहे फिर मुस्कुरा कर प्यार से बोले , ‘ले मल्ली , आज तो तूने मुझे बहुत खुश कर दिया । । तूने भी बहुत मेहनत की है । ईनाम मिलना चाहिए । ये रुपये ले जा । तेरा मर्द तो पूरा पैसा मेरे अड्डे पर खर्च कर ही लोटेगा । ले । तू बच्चों के लिए कुछ लेती जा’ ।

आज फिर उसकी इज्जत नीलाम हो गई थी । अब उसे न रोना आता था , न दुख होता था । वह पत्थर बन गई थी । केवल मशीन । दुर्दांत यातना झेलने के बाद वह उठी ।  चुपचाप कपड़े पहने …रुपये उठाए और लड़खड़ाते कदमों से वापस चल पड़ी।

मल्ली रुपये लेकर घर आ गई । बदन टूट रहा था । थोडी देर सोना चाहती थी ।सब भूलने के लिए नींद आवश्यक थी  । वह लेट गई  । चुपचाप …. बिना कुछ किसी से कहे । दिन निकलने पर उसे काम पर भी जो जाना था ।

***

आज पूरा दिन सीता दीदी बहुत व्यस्त रही थी ।   शाम क बजे छः थे । काम से थोडी थकान लग रही थी ।  सुस्ताने को मन  हुआ  । आकाश  पर गुलाबी लालिमा लुप्त  रही थी । शाम गहरा रही थी । उठकर चाय बनाने की सोची । इतने में कांता बाई तेज रफ्तार से  खट खट की आवाज करती घर में दाखिल हुई । उसकी अनावश्यक बातचीत से बचने के लिए उन्होंने  अपना सिर फिर से  पुस्तकों में गढा दिया क्योंकि वे  जितना गंभीर होने का प्रयत्न करती थी , कांता  उतनी तन्मयता से  उनका ध्यान भंग कर देती थी ।

घर में घुसते ही कांताबाई ने ऊँची आवाज में  कहा, ‘ दीदी सुनो , मेरी मल्ली बाहर जा रही है , काम के लिए । मिल में काम करेगी । खूब पगार मिलेगा ’ ।

सीता जी ने ध्यान नहीं दिया , अनसुना कर दिया ।

उसे यह उदासीनता अच्छी नहीं लगी  । गुस्सा  भी आया और  वह खिन्न होकर चली गई ।  फिर तेज आवाज करती हुई पटक पटक कर बर्तन धोने लगी ।

सीता  ने सर उठाकर पूछा, ‘ अरे ,क्या हुआ ?  इतनी आवाज क्यों कर रही हो ? आज कुछ तोड़ देने का इरादा है क्या?

हाँ , तू क्या बोल रही थी , कहाँ जा रही है तू?’

उसने वहीं से चिल्ला कर कहा, ‘ न दीदी , पहले आप अपना काम कर लो . हमारी कौन पूछे , हम बाद में बोल देंगी।

सीता ने   कुछ नरमी से कहा, ‘ अच्छा बता, क्या बात है?

‘मेरी मल्ली बिदेस जा रही है मिल में काम करने को । हमारी बस्ती की बहुत सारी लड़कियाँ हर साल जाती है और बहुत कमाकर भेजती है । देखना मेरी मल्ली भी छः महीने के अंदर हमारा सारा कर्जा दूर कर देगी’ । उसने चुटकी बजाते हुए कहा।

“कहाँ और क्या काम करेगी तेरी मल्ली ? काला अक्षर भैंस बराबर,न पढी न लिखी, उसे  क्या काम करना आयेगा’? सीता दीदी  हंस दी ।

‘न दीदी, वहाँ जो सब जा रहीं हैं वे क्या पढी लिखी हैं? सब जाती हैं  और वहाँ काम के लिए पढ़ना जरूरी नही’।

‘तो तू चली जा न, तीन तीन बच्चों की माँ को क्यों भेज रही है’? उन्होंने   किंचित आशंकित होकर कहा ।

‘आप भी न दीदी, नादान हो!  वहाँ मुझ जैसी बूढी का क्या काम ? ’ ।

‘तो इसके मरद को भेज दे, गबरू जवान है, यहाँ क्या घास छील लेगा?

‘न केवल लडकियों का ही मिल है, केवल वही जा सकती हैं’ । उसने बात खत्म करने के लहजे में कहा’।

फिर  कुछ  सोचती हुई बोली , ‘दीदी वो गिरिधर है न ….’

सीता ने  बीच में टोकते हुए कहा, ‘ कौन…. वह छटा  हुआ बदमाश जो छः महीने जेल में रहता है, क्या हुआ उसे’ ।

‘हाँ दीदी, वह ही तो मेरे दामाद का यार है । बडे मालिक से भी जान पहचान है । बडे मालिक तो देवता है देवता । जब भी जाओ, कभी भी किसी भी बख्त, कुछ भी माँगो तो मना न करते हैं । कितना कर्जा चढ गया है हमें तो पता भी नहीं । हमेशा बोलते हैं , … कांता तेरी मल्ली  सोना है सोना । ये ही तेरे सब कष्ट दूर करेगी । बहुत उपकार है उनके हम पर । अब वही तो सब लिखा-पढी कर इसे भेज रहे है वरना हमें का मालूम है क्या करना है, कहाँ जाना है । दारोगा से भी सांठ-गांठ है, सब ठीक हो जाएगा’ । वह आश्वस्त लग रही थी ।

सीता हैरान हो गई  । हे भगवान ! … इतना बड़ा धोखा । कैसे इन मासूमों  को ठगा जा रहा है और ये नादान क्या समझ रही है ।   सब जानते हुए भी अंजान बनने का अभिनय वह बखूबी निभा रही थी ।  एकटक देखने पर वह सकपका गई और जल्दी  से काम निपटा कर  निकल गई  ..शायद सीता का इस तरह  घूरना उसे नहीं जंचा ।

आज फिर कांता की बकवास से सीता दीदी खिन्न हो उठी थी ।  कुर्सी पर सर  टिकाए  वे गहरी सोच में डूब गई थी । न जाने कब आँख लग गई और नींद आ गई ।

आहट से आँख खुली । देखा मल्ली आकर पल्लू से मुंह छिपाए बरामदे की दीवाल से सट कर बैठी  हुई थी । सूजा हुआ चेहरा , धंसी हुई आँखें और फटे हुए  होंट रात की आप बीती  सुना रहे थे । सीता दीदी समझ गई थी ।  चुपचाप उठी  अंदर गईं और दो प्याली गर्म गर्म चाय बनाकर  लाईं ।

एक प्याली मल्ली को थमाई और चाय का घूँट भरते हुए गहरी नजरों से वे उसको निहारने लगी ।

कुछ पलों के लिए दोनों के बीच खामोशी पसर गई  । दोनों ही  अपने अपने विचारों में खोये हुए मौन बैठे चाय पी रहे  थे ।

अचानक मल्ली ने चुप्पी तोडी और कहा, ‘ दीदी यह कब तक चलते रहेगा’ । उसकी आँखों में लाल डोरे तैर रहे थे ।

‘जब तू चलने देगी मल्ली तब तक!’ सीता  दीदी ने ने ठंडी सांस भरकर कहा ।

‘नहीं दीदी बहुत दर्द होता है मन में । मैं क्या करूँ? मर क्यों नहीं जाती? मुझे मौत क्यों नहीं आती दीदी ? पर्वत माई मेरी रक्षा क्यों नहीं करती’ ? मल्ली ने बड़ी मुश्किल से अपने आप को अब तक रोक कर रखा था , वह अचानक फूट पडी । उस की आँखों से अश्रु धाराएं  बहने लगी’  । यहाँ आकर इस घर में वह आज खुलकर रो रही थी ! निर्बाध ।

‘मर जाना क्या इतना आसान है मल्ली? बोल ? तीन तीन बच्चे है न ? सीता ने उसे कुछ क्षण रोने दिया । ताकि मन का गुबार हल्का हो जाए ।

‘इस तरह जीना भी तो आसान नहीं दीदी’ । रोते रोते उसकी हिचकियाँ बंध गई थी ।

‘हाँ ! तू सच कह रही है मल्ली । बहुत मुश्किल है । लेकिन इस समस्या का समाधान भी तो तेरे ही पास है न ’? सीता दीदी की बातों ने उसको चौंका दिया । रोना रोक वह उनकी ओर ताकने लगी ।

‘वो कैसे’? उस की आँखों में सवाल तैर गए  ।

‘देख ध्यान से सुन,जब तक तू यूँ ही चुपचाप सहेगी , यह होता रहेगा, लेकिन अगर तू न चाहे तो रुक भी सकता है’ ।

‘नहीं दीदी । वह जान से मार देगा” । मल्ली थोडी भयभीत हो गई थी ।

‘तो भी तेरा ही लाभ होगा न । तुझे इस यातना भरे जीवन से मुक्ति मिल जाएगी, है ना !  और अगर बच गई तो भी मुक्ति तो मिलेगी न इस जिल्लत भरी जिंदगी से ? तो दोनों तरफ तेरा ही फायदा न’? सीता दीदी की बातें असर दिखा रही थीं ।

‘ तो क्या करूँ ? न जाऊँ ? न रे बाबा । डर लगता है दीदी । क्या  आप मेरे साथ हो  दीदी?’

‘हाँ ! और तेरी पर्वत माई भी अब तेरे साथ है  । लेकिन सबसे पहले तुझे अपनी रक्षा खुद करनी है । है ना’ ।

‘तो क्या जाने से मना कर दूँ? मल्ली असमंजस में थी । अबूझ सी,अनुत्तरित प्रश्नों के बीच झूलती हुई ।

‘यह निर्णय तो तुझे करना है मल्ली । मन को कठोर करके । डर मत । कोई तुझे मजबूर नहीं कर सकता । बस तुझे मजबूत होना है’ ।

‘मन तो मेरा भी नहीं मान रहा था दीदी । पर डर गई हूँ । फिर मालिक की नजरों में दोषी हो जाऊँगी दीदी । तो वे क्या करेंगे? मुझे क्या यूँ जीने देंगे’?

‘मल्ली कुछ पाने के लिए कुछ खोना पडता है । अभी से अपना मन बना ले । कुछ तो आहूति देनी होगी । लेकिन जो भी निर्णय ले, उस पर अडिग रह । याद रख, तेरा निर्णय ही अंतिम होगा’ । सीता दीदी की आवाज में कठोरता आ गई थी ।

मल्ली को  कुछ सूझ नहीं रहा था । पता नहीं क्या होगा । आज की रात क्या दिखाने वाली थी । लेकिन मल्ली का मन आज पहली बार कुछ अलग सोच रहा था  और वो भी सुखद अनुभूति के साथ । कुछ  हल्का लग रहा था । मन में चिंगारी जल उठी थी ।अब तो  देर थी  बस हवा की  । हो सकता है  हवा से चिंगारी बुझ जाए या ये भी हो सकता है कि  भड़क कर ज्वाला बन जाए । संभावना तो जग गई थी । क्या होगा , यह तो किस्मत ही बताएगी । भविष्य के गर्भ में कैद !

मल्ली उठी और सधे कदमों से चलने लगी । एक बार उसने पीछे मुड कर देखा । सीता दीदी की आँखें उसी को देख रही थी । मल्ली के सूखे होंठों पर मुस्कुराहट तैर गई ।  वह तेज कदमों से निकल गई

बाहर अंधेरा गहरा गया था । कब शाम से रात हो गयी भान ही न रहा ।  घुप्प  डरावना अंधेरा ।आसमान काले काले बादलों से घिर गया । सांय सांय  हवा चल रही थी । लम्बे लम्बे पेडों के तने  हवा के थपेड़ों से  बुरी तरह झूल रहे थे । …  रह रह कर बिजली कड़क जाती और दिल दहलाने वाली प्रतिध्वनि से  पहाड  गूँज जाते ।रात आज कहर ढा रही थी ।

सीता  बरामदे में बैठी भीगी आँखों से  अंधेरे में उस दिशा में  रही थी जहाँ से मल्ली ओझल हो गई थी ।  पर वहाँ तो कुछ नजर नहीं आ रहा था …… कुछ नहीं … था तो केवल  घना अंधेरा ….  दिलो दिमाग पर  छाया हुआ  …  काश कुछ पलों के लिए   ये अंधेरा स्मृति पर भी छा जाता …कुछ पलों के लिए ही सही नींद ही आ जाती और यह सब विस्मृत हो जाता ….. काश……..!

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लेखक

  • डॉ पद्मावती. शैक्षिक योग्यताएँ = एम. ए, एम. फिल, पी.एच डी, स्लेट (हिंदी) जन्म स्थान = नई दिल्ली वैवाहिक स्थिति = विवाहित ई -मेल = padma.pandyaram@gmail.com संप्रति = * सह आचार्य, हिंदी विभाग, आसन मेमोरियल कॉलेज, जलदम पेट , चेन्नई, 600100 . तमिलनाडु . अध्यापन कार्य = गत 17 वर्षों से स्नातक महाविद्यालय में हिंदी भाषा • महाविद्यालयों और विश्व विद्यालयों में अतिथि व्याख्यान. • चेन्नई के कई स्वायत्त महाविद्यालयों के स्नातक परीक्षाओं में हिंदी के प्रश्न पत्रों का निर्माण तथा पांडिचेरी विश्वविद्यालय की वार्षिक परीक्षाओं में अध्यक्ष और परीक्षक की भूमिका का निर्वहण . साहित्यिक सेवाएं • चेन्नई की लब्ध प्रतिष्ठित स्वैच्छिक हिंदी संस्थान ‘ सत्याशीलता ज्ञानालय’ से जुड़कर कई साहित्यिक गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी , अनेक साहित्यकारों का साक्षात्कार, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्टियो का संचालन और संयोजन . • हिंदी साहित्य भारती तमिलनाडु इकाई की मीडिया प्रभारी . • राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्टियो में प्रतिभगिता और शोध पत्रों का प्रस्तुतीकरण. • ‘रचना उत्सव’ मासिक पत्रिका की दक्षिण भारत की मुख्य समन्वयक • ‘भारत दर्शन’ की संपादक (दक्षिण भारत साहित्य) प्रकाशन • विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्र -पत्रिकाओं में शोध आलेखों का प्रकाशन, • जन कृति,वीणा मासिक पत्रिका, समागम, साहित्य यात्रा जैसी लब्ध प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और साहित्य कुंज व पुरवाई कथा यू .के .जैसी सुप्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक पत्रिकाओं में नियमित लेखन कार्य , कहानी , व्यंग्य लेखन , स्मृति लेख , चिंतन, यात्रा संस्मरण, सांस्कृतिक और साहित्यिक आलेख,पुस्तक समीक्षा ,सिनेमा और साहित्य समीक्षा इत्यादि का प्रकाशन . सम्मान • हिंदी दिवस समारोह के उपलक्ष्य में आयोजित ‘सत्याशीलता ज्ञानालय’ के कार्यक्रम में ७/१२/२०१३ को चेन्नई के माननीय राज्यपाल श्री के. रोसय्या द्वारा शिक्षक सम्मान प्रदान किया गया . • ‘नव सृजन कला साहित्य एवं संस्कृति न्यास’, नई दिल्ली द्वारा ‘हिंदी साहित्य रत्न सम्मान” • ‘हिंदी अकादमी, मुंबई द्वारा’ ‘विशेष हिंदी प्रचारक सम्मान 2021’ • अंतर्राष्ट्रीय महिला मंच द्वारा ‘नारी गौरव सम्मान’ • भारत उत्थान न्यास द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर ‘ भगिनी निवेदिता सम्मान’

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