अपनी सोच को ही कलम से कागज़ पर उतार देता हूं,
महफिल में मिले वाह वाहियां हमें इसलिए हंसा देता हूं,
दिन रात जो करता हूं मैं हद से ज्यादा उद्यम सफर में,
खुश रहे परिवार इस लिए बेहिसाब पसीना बहा देता हूं,
तुम साथ दो यदि मेरा, मैं राह समुंदर में बना दूं,
तुम पास यदि मेरे हो तो,गुलशन को भी महका दूं,
इक पल की दूरी अब बर्दास्त नहीं होती ये जान लो,
साथ दो यदि तुम, हयात को गुल से गुलिस्तां बना दूं।।
हौसला बुलंद कर, कदम उसने बढ़ा दिए,
पत्थर को सीसे के तलवार से उड़ा दिए।
दरिया को भी मोड़ दिया धारा के विपरीत,
मंजिल तक पहुंचने हेतु कांटों को हटा दिए।।
इंतजार कर रही आंखें मेरी तुम्हारे आने का,
वादा जो किया था उसको एक बार निभाने का,
अल्फ़ाज़ ही अब कम पड़ गए कुछ लिख सकूं,
बेचैन है ये दिल अब हो क्या गया जमाने का।
बात उनकी ही मानी जो हर बार ही मैने,
वो खुश रहें हरवक्त जिद जो ठानी थी मैंने।
हर जगह वो किए हरदम अपनी ही मनमानी,
हार उनकी ही जानी हर कदम हर बार जो मैंने।।
काम हम ही आयेंगे,तुम सुनो तो सही,
कालिमा धूल जायेगी,तुम सिलो तो सही।
बीच रास्ते में जो हम खड़े है नजर डाले,
साथ हम ही निभायेगे तुम सुनो तो सही।।