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सावन के झूल/कीर्ति श्रीवास्तव

अमुआ पे लग गए
सावन के झूले
सखियों का तन-मन
मारे हिलोरे।

हरी हरी चूडिय़ाँ संग
मेहंदी रचे हाथ हैं
फूलों का झूला और
सखियों का साथ है
लाल-लाल चुनर
खाती है हिचकोले।
सखियों का तन-मन
मारे हिलोरे।

सोलह श्रंगार कर
सजनी है आई
पिया जी के मन में
बाजे शहनाई
पायल की छम-छम
सबको पुकारे।
सखियों का तन-मन
मारे हिलोरे।

मायके की देहरी भी
सज गई है।
बिटियों के काजे
मैया खड़ी है।
बहनों को लेने
भैया चला रे।
सखियों का तन- मन
मारे हिलोरे।

कीर्ति श्रीवास्तव

लेखक

  • कीर्ति श्रीवास्तव, जन्म स्थान-भोपाल, भारत के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित, साहित्य समीर 'दस्तक' मासिक पत्रिका का संपादन व विभोर प्रकाशन का संचालन

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