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सपनों को जीवन दे बैठा/राहुल द्विवेदी ‘स्मित’

प्रेम यज्ञ की आहुति बनकर, मैं जीवन का शिखर हो गया।
तुम जीकर रह सके न जीवित, मैं मरकर भी अमर हो गया।।

सुलग रही हैं अब तक आहे, जिनको तुमने सुलगाया था
यों तो है उपहार तुम्हारा, किन्तु आँच तुम सह न सकोगे।
जिस एकाकी निर्जन वन में, मैंने काटी उमर विरह की
उसमें आओ रहकर देखो, पल भर भी तुम रह न सकोगे।
हुए जहाँ हम अलग वहीं पर, खड़े अभी तक तुम पग बाँधे
धूल सने नङ्गे पैरों से, मैं मंजिल का सफर हो गया।।

याद तुम्हे भी होगा अब तक, अँधियारे की चौखट पर जब
एक तुम्हारे आ जाने से, दीप हजारों जल उठते थे।
एक तुम्हारे मुस्काने से, बोझिल-बोझिल इन आँखों में
स्वप्न नयी आशाओं वाले, सहज भाव से पल उठते थे।
तुमने रात गुजारी शीतल, नर्म चाँदनी के आँचल में
मैं साये से लिपट धूप के, सूर्य-पुञ्ज सा प्रखर हो गया।।

मैं सुधियों को बुनते-बुनते, सपनों को जीवन दे बैठा
तुम सुधियों की बैसाखी पर, अब तक घायल खड़े हुए हो।
हर ठोकर पर सँभल-सँभल कर, मैंने आगे बढ़ना सीखा
शीशमहल के खण्डहरों में, तुम व्याकुल से पड़े हुए हो।
तेज शोर के बीच कहीं पर, रहे चीखते शब्द तुम्हारे
मैं प्रतिध्वनि सा सन्नाटे में, देखो कैसा मुखर हो गया।।

—-राहुल द्विवेदी ‘स्मित’

लेखक

  • राहुल द्विवेदी ‘स्मित’ शिक्षा -- एम.ए.,बी.एड. प्रकाशन एवं प्रसारण-- गीत संकलन: पुनः युधिष्ठिर छला गया है अनेक साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं, ई- पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन एवं दूरदर्शन पर रचनाओं का प्रसारण। सम्मान- हरिवंशराय बच्चन युवा गीतकार सम्मान-2021 उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान विशेष-- उद्घोषक, आकाशवाणी लखनऊ (लोकायन,खेती किसानी) एवं रेडियो जंक्शन

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