झुम्पा बहुत ही शुशील सज्जन और ईमानदार स्त्री है और मेहनती भी ,श्याम वर्ण की उसकी काया तीखे नयन-नक्ष उसकी सुन्दरता दर्शाते हैं उसके चेहरे पर हमेशा मुस्कान उसकी सुन्दरता में चार चांद लगा देती है, दो बच्चे हैं पर लगती नहीं कि इतनी आयु होगी। हमेशा मुस्कान के मोती से बिखरते ,पर ना जाने क्यू आँखो में कोई चमक नहीं थी।
जैसे कुछ छुपाती हो ,हंसते हंसते उसकी आँखो में पानी आ जाता जैसे दर्द उमड़ आया हो। झुम्पा मेरे यहां काम करती है
पर हमेशा वो मुझे घर के सदस्य सी ही लगी।
अभी कुछ समय पहले वो आई और चुप काम में व्यस्त हो गई मैं ये तो जानती थी कि ये कुछ तो छुपाती है फिर लगा शायद ये आज कुछ बोलेगी ।
मैंने बोला झुम्पा क्या हुआ आज इतनी शान्त और सहमी सी क्यों हो, कोई जबाब नहीं आया, मैंने फिर पूछा क्या तुम ठीक हो कुछ तो बोलो वो मुंह नीचे किए काम करती रही
लगा शायद मन की स्थिति अच्छी नहीं है फिर मैंने उसको रोज़ की तरह नाश्ता दिया कहा पहले कुछ खाले बाद में काम करना वो धीरे से मेरे पास आई प्लेट पकड़ ली और
उसके नयनों से जलधारा वहने लगी मैं यह दृश्य देख कर सहम उठी कुछ समझ नहीं आया यह वही प्यारी सी झुम्पा है
जो हमेशा खुश रहती हैं फिर लगा कि ये कितना दर्द छुपाए
रहती है, मैंने उसके बोला पहले कुछ खालो रोना बन्द करो
मैं अन्दर अपने कमरे में आ गई घर में जैसे सन्नाटा छा गया
हिम्मत कर के आवाज़ दी मैंने झुम्पा तुमने खाया या अभी नहीं वो नाश्ता करते हुए भी रो रही थी
उसकी आवाज़ आई जी दीदी खा लिया चाय पी रही हूँ
मैंने बोला अपनी चाय ले कर मेरे पास आ जाओ दोनों साथ में चाय पीतें हैं
झुम्पा-
वो आकर दरवाजे से लग कर खडी़ हो गई वोली दीदी कोई गलती हो गई क्या
मैंने बोला तू गलती करती ही कहां है। बैठ जा बात क्या है तू क्यों इतनी परेशान है बताएगी तो तेरा मन हल्का होगा। मैंने उसके हाथों को अपने हाथों से पकड लिया मैं भी एक औरत हूं समझ सकती हूं
झुम्पा- रोने लगी कल से भूखी हूं दीदी रात कुछ नहीं खाया
यहां से जा कर खाना बनाया सब ने खा लिया बच्चों को सुला दिया शादी को सात साल हो चुके हैं पर कुछ नहीं बदला मेरी सास और ससुर गाली देते हैं पति शरा्ब पी कर मारता है कोई मुझे बचाता भी नहीं मेरे बाल पकड कर खींचा फिर मेरे गालो पर थप्पड मारे मैं शोर मचाती रही किसी ने मेरी मदद नहीं की बहुत चोट लगती है दीदी। यहां से जा कर सारा काम करती हूं अपने बच्चों के लिए चार पैसे कमाती हूं ताकि बच्चों को अच्छा जीवन दे सकूं दिन में बैठती भी नही हूं थक जाती हूं फिर भी मुझे निकम्मा बोलते हैं हर तीसरे दिन मारपीट होती है रात भी रोते रोते कब आँख लग गई पता ही नहीं लगा सुबह उठकर सारा काम किया मन करता है मर जाऊं पल-पल मरने से अच्छा होगा मेरा पीछ छूट जाएगा शरीर में दीदी जान नहीं रही इतना मार खाती हूं बहुत थक गई हँ एसी जिन्दगी से दीदी आँखो में उसकी सैलाब सा आ रहा था उसकी पीडा शब्दों में नही कही जा सकती है
दीदी मैने मायके में काम नहीं किया था माँ बाबा भी कभी नहीं डाटते थे पता नहीं मेरे साथ ये सब क्यों हो रहा है।
मेरा मन बहुत दुखी हुआ बहुत पीड़ा हो रही थी सुनकर
मैं सहम गई थी सुन कर ईश्वर झुम्पा को शक्ति दे उसके शरीर पर बहुत निशान थे मुरझाया सा उसका चेहरा था
आँखें रो कर सूजी हुई थी कितना दर्द था कितने लाचार थी
मैं भी टूट चुकी थी
झुम्पा – बोली मर गई तो बच्चों का क्या होगा । मायके भी नहीं जा सकती वहां भावीयां ताना मारेंगी ,रोज का ये नाटक भी सहन नहीं होता है
मैंने बोला ये तरीका नहीं है औरत के साथ ये सब अपराध है
मैं तुम्हारे घर सास-ससुर से बात करूंगी तुम रोना बन्द करो ये दवाई खा लो आराम मिलेगा नहीं तो पुलिस से शिकायत करेंगें वो सुन कर डर गई नहीं दीदी आप बात करेगी तो मारेगें कि हमारी बुराई करती है, पुलिस तो कभी नहीं दीदी पति है वो, फिर मैं कहाँ जाऊगी अब सर पर छत तो है
मैंने कहा शांत हो जा कुछ नहीं करेंगे
झुम्पा-
फिर कुछ समय के बाद एक फोन आया दीदी झुम्पा बोल रही हूँ मैं अब काम पर नहीं आऊंगी हम अपने गांव जा रहे हैं शायद वहां जा कर सब ठीक हो जाए
मैंने सुन कर सन सी रह गई मैंने पूछा कैसी हो, वहां जा कर अपना फोन नम्बर देना, बस फोन कट गया ना कभी वो नम्बर मिला, ना उसका फोन आया ईश्वर उसका हमेशा साथ दे यही सोचती हूँ
कैसा पति है अपनी पत्नी को सम्मान नहीं दे सकता है उपर से ऐसा व्यवहार करता है हमारे समाज में ये रूढीवादी सोच स्त्री का इतना अपमान क्यों होता है क्यों हम हर बार चुप हो जाते हैं क्यों
आवाज़ नहीं उठाते है क्या स्त्री को दर्द नहीं होता है
समाज को अपनी सोच बदलनी चाहिये
स्त्री को भी अपने लिए स्वयं खडा होना चाहिए
सुरभि डागर
मार्मिक चित्रण
आपका हार्दिक आभार संपादक महोदय जी ।
मेरी कहानी को साहित्य रत्न में स्थान देने के लिए।