थोड़ा सा बतियालूं मैंं
सोच रहा हूँ बहुत दिनों से
थोड़ा सा हरषालूं मैं
खुलकर अगर नहीं हंस पाया
मन ही मन मुस्कालूं मैं।
गूंगी सुबह रोज मिलती
मैं मिलता बहरी रातों से
लेकिन यह इच्छा समझौता
करने की हालातों से
जीवन के पथरीले पथ को
थोड़ा सुगम बनालूं मैं।
इस जीवन की दशा दिशा से
नहीं हुआ हूँ मैं बागी
पता नहीं है फिर भी मन में
क्यों ऐसी इच्छा जागी
वर्षों से नाराज खुशी को
थोड़ा पास बिठालूं मैं।
थका नहीं हूँ फिर भी थोड़ा
सा सुस्ताने को मन है
घुप्प अंधेरे में कुछ पल को
धूप खिलाने का मन है
आँगन में चन्दन की खूशबू
थोड़ी सी बिखरा लूँ मैं।
मन है मैं थोड़ा झुक जाऊं
छोटी चाहत के आगे
बचपन के सपनों से जोड़ूं
टूट गये हैं जो धागे
दूर खड़ी चुलबुली हवा से
थोड़ा सा बतियालूं मैं।
लेखक
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मयंक श्रीवास्तव प्रकाशित कृतियाँ- ‘उंगलियां उठती रहें’, ‘ठहरा हुआ समय’, ‘रामवती’ काव्य संग्रह। सम्मान- हरिओम शरण चौबे सम्म्मान (मध्य प्रदेश लेखक संघ), अभिनव शब्द शिल्पी सम्मान (मधुवन), विद्रोही अलंकरण सम्मान (विद्रोही सृजन पीठ), साहित्य प्रदीप सम्मान (कला मंदिर) वर्ष 1960 से माध्यमिक शिक्षा मण्डल मध्य प्रदेश में विभिन्न पदों पर रहते हुए वर्ष 1999 में सहायक सचिव के पद से सेवा निवृत।
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