+91-9997111311,    support@sahityaratan.com

चक्की में पिसता इंसान/पंजाबी लघुकथा/रजनी

शिवजोत जब आज ऑफिस से घर देरी से पहुंचा तब सोफे पर थकावट के कारण ऐसे गिर गया जैसे कि पता नहीं कितने सालों की थकावट उसके अंदर घर कर चुकी थे इतने में शिवजोत की पत्नी रसोई में से बड़बड़ाती हुई आई और कहती है कि जब हम नौकरी पर जाते हैं तब बीजी( मां जी)अपने बेटे को सही ढंग से नहीं खिलाती ,पिलाती और ना ही बच्चे के कपड़े खराब होने पर बदलती है ।शिवजोत उसको प्यार से समझाता हुआ कहता है कि “बीजी की अब उम्र हो चली है अब वह खुद का ही ख्याल नहीं रख पा रही इसके बावजूद वह अपने बेटे को संभाल रही है। क्या इतना ही काफी नहीं?” यह सुनकर पत्नी गुस्से में और भड़क जाती है और पानी का गिलास जो वह शिवजोत के लिए लाई थी उसे मेज पर जोर से रख कर वापस रसोई में काम करने चली जाती है ।कुछ देर बाद शिवजोत की माताजी अपनी पोती हरलीन का हाथ पकड़े उसे स्कूल से वापस लेकर आई और शिवजोत के पास बैठी हुई कहती है इस उम्र में मेरे से सेवा करवाने की जगह अगर मेरी सेवा की जाए तो शायद मैं कुछ साल ज्यादा जी लूंगी पर तेरी पत्नी के व्यवहार ने तो मुझे बहुत दुखी किया हुआ है। अगर मैं तेरे बच्चों का सही ख्याल नहीं रख सकती तो क्यों ना उनके लिए एक कामवाली रख लो मैं भी अपनी जिम्मेदारियां से मुक्त हो जाऊंगी। यह कहकर वह वाहेगुरु वाहेगुरु करती हुई अपने कमरे में चली जाती है। मां की और पत्नी की बातों को सुनकर शिवजोत अपने आप को कनक के दानों के समान महसूस कर रहा था।

अनुवाद-लेखिका द्वारा स्वयं

लेखक

  • रजनी जन्म-10/07/1979 प्रकाशित पुस्तकें- कूले कंडे 'पंजाबी लघुकथा संग्रह' प्रकाशन- देश-विदेश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ निरन्तर प्रकाशित सम्प्रति- अध्यापन कार्य 'स्नातकोत्तर शिक्षिका पंजाबी भाषा'  

    View all posts
चक्की में पिसता इंसान/पंजाबी लघुकथा/रजनी

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *