अंदर का कालापन (लघुकथा)
“जस्सी जल्दी-जल्दी तैयार हो जा, तेरे ताया,ताई अपना इंतजार कर रहे होंगे।” शरणजीत ने अपनी बेटी को ऊंची आवाज में कहा। क्योंकि आज शरणजीत और उसकी बड़ी बेटी जस्सी ने अपने जेठ और जेठानी के साथ नजदीक के गांव बंगा में शादी में जाना था।छोटी बेटी सिम्मी पहले से ही अपने ताई के घर गई हुई थी। जस्सी को भी शादी में जाने का बड़ा चाव था। वह मां के कहने पर गोबर से भरे हाथ धो लेती है। और नहाकर पिछले साल फ़सल कटाई पर मां के द्वारा दिलवाया रेशमी सूट,अपने बालों में सुंदर परांदा डालकर, आंखों में सुरमा डालकर मां के पास चली जाती है।शरणजीत जस्सी को देखकर बहुत खुश होती है। और उसे दुआएं देती है। जस्सी भी अपनी मां को कई दिन बाद कढ़ाई की हुई बूटियों वाला सूट देख व हल्की सी लिपस्टिक और मोतियों का हार डाले हुए देखकर बहुत खुश होती है। जस्सी अपनी मां की तारीफ करती हुई कहती है की मम्मी आप रोज ही ऐसे बन कर रहा करो। यह सुनकर शरणजीत हल्का सा मुस्कुराहट देती है व अपनी बेटी के सिर पर हाथ रखती हुई उदास हो जाती है। क्योंकि शरणजीत के पति को मरे चार साल हो गए थे। तब से लेकर अब तक शरणजीत ने कभी ढंग से सिंगार करके नहीं देखा था।जस्सी के बुलाने से शरणजीत जल्दी से घर को ताला लगाकर अपने जेठ के घर चली जाती है। जेठ बहुत नेक इंसान था, वह शरणजीत को सांझी जमीन की कमाई का कुछ हिस्सा ज्यादा देता । शरणजीत की छोटी बेटी अपने ताया की ज्यादा लाडली थी। और ताया ,ताई के पास ही रहती थी। जस्सी और शरणजीत जैसे ही उनके घर पहुंचे तब अंदर से उसकी जेठानी ने शरणजीत को घूरते हुए देखा और धीरे से अपने पति को शरणजीत के द्वारा किए गए श्रृंगार पर कहा कि “इसे देखकर कौन कहेगा कि यह विधवा है ,और ना सही तो कम से कम अपनी जवान होती बेटियों का ही लिहाज कर लेती।” यह सुनकर शरणजीत का जेठ अपनी पत्नी को समझाता है कि जिंदगी में विधवा होना कोई गुनाह नहीं और विधवा के भी अपने चाव होते होंगे। जिनको पूरा करने का उसे पूरा हक है। एक दायरे में रहकर अपने शौंक पूरा करने का हक हम सबको होता है। जेठानी को अपने बोली गई बात पर अफसोस होता है और वह जल्दी से सुरमेदानी उठाकर शरणजीत के कान के पीछे काला टीका लगाती हुई महसूस करती है कि जैसे उसने अपने अंदर के कालेपन को शरणजीत के कान के पीछे लगा दिया हो
अनुवाद-लेखिका द्वारा स्वयं