अपाहिज़ कौन ?
रोजाना की तरह कालांवाली से बठिंडा जाने वाली रेलगाड़ी में मलकीत और उसके चार दोस्त ताश के पत्ते बांटने लगते हैं तब सुखदेव ने भ्रष्टाचार का विषय छेड़ लिया जिसमें धीरे-धीरे उनके रोजाना की मित्र टोली के अलावा आम सवारियां भी जुड़ गई। बातों-बातों में ज़िक्र सरकारी मुलाजिमों का भी चल पड़ा। रेलगाड़ी भी अपनी रफ़्तार बढ़ा रही थी। मलकीत ने नजदीक के गांव में चुने गए सरपंच के बारे में बात करनी शुरू की, कि वह सरपंच मलकीत के चाचा का खास दोस्त है मलकीत उसकी तारीफ करता है और उसकी कमियों को नजरंदाज करता है जबकि उसकी ताश की खेल का एक खिलाड़ी सतपाल उसी गांव का है जिस गांव के सरपंच की प्रशंसा मलकीत कर रहा था।सतपाल से रहा नहीं गया उसने बोलना शुरू किया कि किस तरह सरपंच ने एक जायज़ कागज़ पर हस्ताक्षर करने के लिए भी मिन्नते करनी पड़ी। मलकीत अपनी जोरदार आवाज में इस बात को एक आम बात कह कर उसे चुप करवा देता है। और ताश की बाज़ी आगे बढ़ाने के लिए कहता है। मलकीत कहता है ,”मैं यह बात मानता हूं की जायज़ काम में भी देरी करवाना भ्रष्टाचार का हिस्सा है, पर यह बात समाज का हिस्सा बन चुकी है, हम सभी को मिलकर इस बुराई का अंत करना चाहिए।”रेलगाड़ी के डिब्बे के सारे लोग उसकी बात को ध्यान से सुन रहे थे। इतने में एक मुरमुरे बेचने वाला लड़का आया जो की लंगड़ा था मलकीत ने उसे ₹10 वाले 6 मुरमुरे लेकर उसको ₹50 दे दिए जब उसे अपाहिज लड़के ने मलकीत को ₹10 और देने के लिए कहा तब मलकीत ने उसको जोर से डांटते हुए वहां से भगा दिया। मलकीत मजबूर लड़के पर बेमतलब से रोब रखना अपना हक समझ रहा था। वह लड़का चुपचाप मुंह लटका के रेलगाड़ी से नीचे उतर गया। मलकीत के स्टेशन से ही चढ़ा एक बुजुर्ग उसकी बात को शुरू से लेकर अंत तक सुन रहा था, वह मलकीत के मुरमुरे बेचने वाले लड़के के साथ किए व्यवहार पर मुस्कुरा रहा था। उसने मुस्कुराते हुए कहा,” मलकीत सिंह भ्रष्टाचार ने तो हम सबको अपाहिज बना दिया है चाहे वह ₹10 के मुरमुरे के लिए ही क्यों ना हो ।”बुजुर्ग अपना स्टेशन आते ही उस अपाहिज लड़के के पीछे-पीछे स्टेशन से उतर जाता है।और मलकीत समाज सेवा का अपना उपदेश जारी रखता है।
अनुवाद-लेखिका द्वारा स्वयं