गुरप्रीत पांचवी कक्षा की चुलबुली सी बच्ची है। सारा दिन इधर से उधर बिना मतलब के घूमती रहती उसके पैरों को कभी भी चैन न था। उसकी कक्षा में नसीबो उसकी सबसे पक्की सहेली थी जो की गुरप्रीत के घर के नजदीक ही रहती थी। वह दोनों स्कूल इकट्ठी आती जाती और शाम को भी इकट्ठी खेलती थी। अंग्रेजी वाले मास्टर जी प्रार्थना सभा में रोजाना बच्चों को कुछ देर के लिए नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाते थे। और बच्चे बड़ी लगन में ध्यान से उनकी बात को सुनते थे।कल मास्टर जी ने सारे बच्चों को सबक सिखाया कि सुबह सब बच्चों ने अपने माता-पिता के पैरों को हाथ लगाकर आशीर्वाद लेकर दिन की शुरुआत करनी है। आज जब मास्टर जी ने प्रार्थना के बाद सभी बच्चों से पूछा कि कौन-कौन विद्यार्थी अपने माता-पिता के पैरों को हाथ लगाकर आया है? गुरप्रीत को छोड़कर बाकी सभी बच्चों ने हाथ खड़ा किया। शरारती गुरप्रीत चुपचाप नजर झुकाए बैठी रही। मास्टर जी ने अपनी पारखी नजर से उसको देख लिया। मास्टर जी ने डांटते हुए उससे पूछा कि, “गुरप्रीत तूने क्यों नहीं लगाया अपने माता-पिता के पैरों को हाथ?” तब गुरप्रीत डांट सुनकर रोने लगी यह देख गुरप्रीत की सहेली नसीबों से रहा नहीं गया वह तुरंत खड़ी होती है और मास्टर जी को बताती है कि मास्टर जी गुरप्रीत के माता-पिता इस दुनिया में नहीं है यह सुनकर मास्टर जी को बहुत अफसोस हुआ उन्होंने गुरप्रीत को बिना जाने डांटने का दुख था।रोई हुई गुरप्रीत में आंसू उसको ऐसे लगे जैसे उस मासूम बच्ची का चुलबुलापन उसके आंसुओं के साथ मिलकर बह गया हो फिर स्टाफ रूम में जाकर मास्टर जी भी अपने आंसुओं को रोक नहीं पाया क्योंकि अपने मां-बाप को बचपन में खो जाने का दर्द वह बचपन से ही जानता था। आज मास्टर जी भी अपने आंसू को रोक नहीं सके क्योंकि बचपन में ही अनाथ होने का बोझ और दुख वह अच्छे से जानता था मास्टर जी को ऐसे लगा जैसे आज तक गुरप्रीत और वह खुद अपने आप को खुश दिखाने के लिए मुखौटा लगाकर रख रहे थे पर आज जैसे उनका नकली मुखौटा कुछ पलों के लिए उतर गया था।
अनुवाद-लेखिका द्वारा स्वयं