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जज़्बाती दोस्ती /पंजाबी लघुकथा/रजनी

ढिल्लों चौंक से गुजरते जब निर्मल स्कूटी पर अपने स्कूल जाती तो रास्ते में आने वाली तंग गली में बार-बार होरन बजाने से भी गली के कुत्ते और बूढ़ा कुलवंत एक तरफ ना हुए, निर्मल ने नाराजगी जताते हुए कहा,”बाबा जी, आपके इन कुत्तों और आपके यहां इकठ्ठा खड़े होने के कारण मैं रोज स्कूल जाने से लेट हो जाती हूं।”तो कुलवंत ने बड़े प्यार और नम्रता से कहा,”बेटी, इन बेजुबान जानवरों का और कौन सहारा है, यह मेरे लिए कुत्ते नहीं बल्कि मेरे यार दोस्त भी हैं।” यह कहता हुआ वह फिर कुत्तों को जग्गे की दुकान से लाए गए बिस्किट्टों के टुकड़े और रात की बची हुई बासी रोटी खिलाने में मस्त हो जाता है निर्मल भी बड़बड़ाती हुई अपनी स्कूटी का होरन बजाती हुई वहां से चली जाती है। पर एक दिन निर्मल को तंग गली में कुत्ते बिना कुलवंत के उदास खड़े दिखे, जैसे की वह सारे कुत्ते इकट्ठे खड़े होकर अपने खास यार दोस्त की का इंतजार कर रहे थे। गर्मी की छुट्टियों के बाद जब निर्मल ने दोबारा स्कूल जाना शुरू किया तब तंग गली में ना कुत्ते थे और ना ही बूढ़ा कुलवंत। निर्मल गली खाली देखकर खुशी-खुशी स्कूटी की रफ़्तार तेज करके वहां से चली गई।स्कूल में कक्षा की एक लड़की से उसे पता चला कि बूढ़े कुलवंत को उसके बेटे ने बीमार होने के कारण घर से निकाला हुआ था। एक महीना पहले दिल का दौरा पड़ने से उसकी मौत हो गई थी। छुट्टी होने पर निर्मल उदास सी अपने घर आ गई। सारा दिन बूढ़े कुलवंत का मायूस चेहरा उसकी आंखों के आगे घूमता रहा। बेचैनी भरे मन से निर्मल रात को सोने लगी तो अपनी मां को यह कहकर सोई कि बीबी दो-तीन रोटियां फालतू बना कर रख देना मेरे कुछ दोस्तों को बासी रोटी खाने की आदत है यह कहकर निर्मल जिम्मेदारी भरे मन से सोने के लिए चली जाती है।

अनुवाद-लेखिका द्वारा स्वयं

लेखक

  • रजनी जन्म-10/07/1979 प्रकाशित पुस्तकें- कूले कंडे 'पंजाबी लघुकथा संग्रह' प्रकाशन- देश-विदेश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ निरन्तर प्रकाशित सम्प्रति- अध्यापन कार्य 'स्नातकोत्तर शिक्षिका पंजाबी भाषा'  

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