बलराज सेठ ने अपने बेटे कमल के जन्मदिन की तैयारी पर शहर के सभी व्यापारियों,नेताओं और प्रसिद्ध लोगों को आमंत्रण भेजा।शहर का सबसे महंगा होटल बुक किया गया। जन्मदिन पर शादियों जैसी तैयारी जोरों पर थी। इत्तेफाक से सेठ के ड्राइवर महेश की लड़की का जन्मदिन भी उसी दिन ही था जिस दिन कमल का जन्मदिन था। बेटी ने महेश को जन्मदिन पर साइकिल लेकर देने की इच्छा जाहिर की। महेश ने उसकी खुशी के लिए हां कर दिया।पर जैसे ही उसने सेठ से बेटी के जन्मदिन के लिए छुट्टी मांगी। तब सेठ उसको घूरता हुआ बोला कि “तुझे दिखता नहीं की कमल के जन्मदिन पर मंत्रियों को हवाई अड्डे से लेकर लाना और उनको छोड़कर आना है, कुछ तो अपने दिमाग से भी काम लिया कर।” महेश मुंह लटका कर मायूस होते हुए वहां से चला गया। आखिर जन्मदिन वाला दिन भी आ गया । खुशियां चाहे अमीर के घर में हो या किसी गरीब के घर इसका चाव सभी को एक जैसा होता है। महेश सोई हुई लड़की बेटी को आशीर्वाद देते हुए और उसका माथा चूमते हुए अपनी पत्नी की तरफ लाचारी भरी नजरों से देखा हुआ यह कहता है कि ,”मैं कोशिश करूंगा, शाम को जल्दी घर वापस आने की।” सेठ के घर पहुंच के भी महेश का ध्यान अपनी बेटी की तरफ ही रहा।शाम बीत जाने पर वह हिम्मत करके सेठ के पास छुट्टी मांगने जाता है पर सेठ ने उसको सबके सामने डांटते हुए कामचोर कहा।महेश ने फिर बेमन से अपने बचे खुशी काम को समेटा ।रात जब वह अपने घर वापस गया तब उसकी लाडली बेटी बिना केक काटे ही सो चुकी थी। महेश भरी आंखों से बेटी का माथा चूमता है और उसकी चारपाई के पास बैठ जाता है। अचानक कपडे के छोटे-छोटे टुकड़ों से बनी हुई गुड़िया उसकी बेटी के हाथों से गिर नीचे गिर जाती है और उसकी बेटी जाग जाती है वह अपने पिता की तरफ नाराजगी से देखती हुई दूसरी तरफ मुंह करके सो जाती है। दर्द भरी आंखों से महेश बेटी को अपनी गोदी में लेकर उसे सीने से लगा लेता है। नींद में भरी हुई बेटी को भी अपने पिता की गोदी का स्नेह ही जन्मदिन का अनमोल तोहफ़ा लगता है।
अनुवाद-लेखिका द्वारा स्वयं