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सफ़ेद सलवार/कविता/पल्लवी पाण्डेय

सफेद सूट सलवार पहन
स्कूल ,कॉलेज जाती लडकियां
महीने के चार –पांच दिन
कितनी ही आशंकाओं से घिरी होती है
पीरियड का दर्द सहते हुए भी
हर वक्त
एक चिंता
दाग के लग जाने का ,
और वह दाग ,
किसी को दिख जाने का।
कितना कठिन है उन दिनों
निर्धारित सफेद परिधान पहनना
घर से कॉलेज की दूरी तय करना
और अपनी सखी से बार – बार पूछना
‘देखो कुछ लगा तो नहीं’ ।
कितना मुश्किल होता है
दाग लगे कपड़े में घर तक पहुंचना
चुभती आंखों के प्रहार से बचना ,
अपराधबोध से घिरे रहना
पीरियड के दिनों में बस पीरियड पर सोचना ।
आज भी पीरियड को छुपा कर रखने का हिमायती समाज ,
जब
महावारी के लाल दाग को अपराध समझता है
ओवरफ्लो से यदि हो जाएं कपड़े खराब
लड़की को फूहड़ समझता है
तब वही समाज
क्यों चुप रहता है जब बेटियां पहनती हैं मजबूरी में सफेद सूट सलवार
सुनो लड़कियों
यह समस्या तुम्हारी है
अपने हक में बोलने की बारी तुम्हारी है
उन दिनों तुम
अपनी सहूलियत के
रंगीन कपड़े पहनना
जब उठे सवाल तो बेधड़क बोलना ।
तुम प्रश्न करना
उन तमाम विज्ञापनों पर
जो करते हैं पैड का प्रचार
दिखाते हैं पीरियड में भागती दौड़ती ,मुश्किल काम करती लड़कियां ,
बताना उन्हें
पैड दर्द की दवा नही होता
बस
उन दिनों को थोड़ा आसान करता है

 

लेखक

  • पल्लवी पाण्डेय सहायक आचार्य बीडीएम गर्ल्स डिग्री कॉलेज शिकोहाबाद फिरोजाबाद परारंभिक शिक्षा – वाराणसी उच्च शिक्षा : बी ए , एम ए , पीएचडी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) एसोसिएट रिसोर्स पर्सन अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन पौड़ी गढ़वाल प्रकाशित रचनाएं –सृजन की ज़मीन (काव्य संग्रह)

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