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मेरी कविता/कविता/पल्लवी पाण्डेय

मेरी कविता
तुम तब क्यों आती हो
जब मैं काट रही होती हूं आलू , प्याज़, टमाटर
छौंकती हूं सब्जियां
भूनती हूं मसालें
दिमाग लगा होता है स्वादानुसार नमक की ओर
उसी दौरान क्यों आ जाती हो
इतने नए बिंबों को समेटे हुए
कड़ाही में उबलती सब्जी के
साथ पक जाते हैं शब्द तुम्हारे ,
सुनो मेरी कविता
तुम उस वक्त क्यों खटका जाती हो जोरों से मेरा हृदय कपाट ,
मैं निकली होती हूं किसी लंबी यात्रा पर
हो बस , तो कभी ट्रेन में सवार
खिड़की से देखते हुए
बाज़ार नहर नदियां पेड़ और खेत खलिहान
मेरी मन में उपजी कविता माला
तुम बिखर जाती हो
किसी चौराहे पर हो तार –तार ,
हे मेरी कविता
तुम क्यों आ जाती उसी वक्त अचानक मेरे एकदम पास
जब मेरी पहुंच से बहुत दूर होते है कागज़ ,कलम और दवात ,
मैं चाह कर भी तुमको लिख नहीं पाती ,
एक कविता आई थी बस इतना याद करते– करते निदिया की गोद में सो जाती
हर बार
कितनी ही कविताएं होकर उदास लौट जाती हैं ।
सुनो !मेरी कविता
तुमसे बस पूछा है हमने
यूं रूठ न जाना
हो चाहे मंगल बुध या इतवार
चाहे दिन हो या रात
तुम बेझिझक आना
मेरे खाने का स्वाद बढ़ाना
मेरी यात्रा को सुखद बनाना
जगा लेना कभी पूरी –पूरी रात
कभी भूलना नहीं रास्ता मुझ तक आने का
सुनो मेरी उदास कविता
अगली बार हंसते हुए तुम
जरुर आना ।

लेखक

  • पल्लवी पाण्डेय सहायक आचार्य बीडीएम गर्ल्स डिग्री कॉलेज शिकोहाबाद फिरोजाबाद परारंभिक शिक्षा – वाराणसी उच्च शिक्षा : बी ए , एम ए , पीएचडी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) एसोसिएट रिसोर्स पर्सन अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन पौड़ी गढ़वाल प्रकाशित रचनाएं –सृजन की ज़मीन (काव्य संग्रह)

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